وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ وَّلَا مُؤْمِنَةٍ اِذَا قَضَى اللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗٓ اَمْرًا اَنْ يَّكُوْنَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ مِنْ اَمْرِهِمْ ۗوَمَنْ يَّعْصِ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ فَقَدْ ضَلَّ ضَلٰلًا مُّبِيْنًاۗ ( الأحزاب: ٣٦ )
Wama kana limuminin wala muminatin itha qada Allahu warasooluhu amran an yakoona lahumu alkhiyaratu min amrihim waman ya'si Allaha warasoolahu faqad dalla dalalan mubeenan (al-ʾAḥzāb 33:36)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
न किसी ईमानवाले पुरुष और न किसी ईमानवाली स्त्री को यह अधिकार है कि जब अल्लाह और उसका रसूल किसी मामले का फ़ैसला कर दें, तो फिर उन्हें अपने मामले में कोई अधिकार शेष रहे। जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करे तो वह खुली गुमराही में पड़ गया
English Sahih:
It is not for a believing man or a believing woman, when Allah and His Messenger have decided a matter, that they should [thereafter] have any choice about their affair. And whoever disobeys Allah and His Messenger has certainly strayed into clear error. ([33] Al-Ahzab : 36)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और न किसी ईमानदार मर्द को ये मुनासिब है और न किसी ईमानदार औरत को जब खुदा और उसके रसूल किसी काम का हुक्म दें तो उनको अपने उस काम (के करने न करने) अख़तेयार हो और (याद रहे कि) जिस शख्स ने खुदा और उसके रसूल की नाफरमानी की वह यक़ीनन खुल्लम खुल्ला गुमराही में मुब्तिला हो चुका