وَاِذْ قَالَتْ طَّاۤىِٕفَةٌ مِّنْهُمْ يٰٓاَهْلَ يَثْرِبَ لَا مُقَامَ لَكُمْ فَارْجِعُوْا ۚوَيَسْتَأْذِنُ فَرِيْقٌ مِّنْهُمُ النَّبِيَّ يَقُوْلُوْنَ اِنَّ بُيُوْتَنَا عَوْرَةٌ ۗوَمَا هِيَ بِعَوْرَةٍ ۗاِنْ يُّرِيْدُوْنَ اِلَّا فِرَارًا ( الأحزاب: ١٣ )
Waith qalat taifatun minhum ya ahla yathriba la muqama lakum fairji'oo wayastathinu fareequn minhumu alnnabiyya yaqooloona inna buyootana 'awratun wama hiya bi'awratin in yureedoona illa firaran (al-ʾAḥzāb 33:13)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और जबकि उनमें से एक गिरोह ने कहा, 'ऐ यसरिबवालो, तुम्हारे लिए ठहरने का कोई मौक़ा नहीं। अतः लौट चलो।' और उनका एक गिरोह नबी से यह कहकर (वापस जाने की) अनुमति चाह रहा था कि 'हमारे घर असुरक्षित है।' यद्यपि वे असुरक्षित न थे। वे तो बस भागना चाहते थे
English Sahih:
And when a faction of them said, "O people of Yathrib, there is no stability for you [here], so return [home]." And a party of them asked permission of the Prophet, saying, "Indeed, our houses are exposed [i.e., unprotected]," while they were not exposed. They did not intend except to flee. ([33] Al-Ahzab : 13)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और अब उनमें का एक गिरोह कहने लगा था कि ऐ मदीने वालों अब (दुश्मन के मुक़ाबलें में ) तुम्हारे कहीं ठिकाना नहीं तो (बेहतर है कि अब भी) पलट चलो और उनमें से कुछ लोग रसूल से (घर लौट जाने की) इजाज़त माँगने लगे थे कि हमारे घर (मर्दों से) बिल्कुल ख़ाली (गैर महफूज़) पड़े हुए हैं - हालाँकि वह ख़ाली (ग़ैर महफूज़) न थे (बल्कि) वह लोग तो (इसी बहाने से) बस भागना चाहते हैं