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ثُمَّ سَوّٰىهُ وَنَفَخَ فِيْهِ مِنْ رُّوْحِهٖ وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْاَبْصَارَ وَالْاَفْـِٕدَةَۗ قَلِيْلًا مَّا تَشْكُرُوْنَ   ( السجدة: ٩ )

Then
ثُمَّ
फिर
He fashioned him
سَوَّىٰهُ
उसने दुरुस्त किया उसे
and breathed
وَنَفَخَ
और उसने फूँक दिया
into him
فِيهِ
उसमें
from
مِن
अपनी रूह से
His spirit
رُّوحِهِۦۖ
अपनी रूह से
and made
وَجَعَلَ
और उसने बनाए
for you
لَكُمُ
तुम्हारे लिए
the hearing
ٱلسَّمْعَ
कान
and the sight
وَٱلْأَبْصَٰرَ
और आँखें
and feelings;
وَٱلْأَفْـِٔدَةَۚ
और दिल
little
قَلِيلًا
कितना कम
[what]
مَّا
कितना कम
thanks you give
تَشْكُرُونَ
तुम शुक्र अदा करते हो

Thumma sawwahu wanafakha feehi min roohihi waja'ala lakumu alssam'a waalabsara waalafidata qaleelan ma tashkuroona (as-Sajdah 32:9)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

फिर उसे ठीक-ठीक किया और उसमें अपनी रूह (आत्मा) फूँकी। और तुम्हें कान और आँखें और दिल दिए। तुम आभारी थोड़े ही होते हो

English Sahih:

Then He proportioned him and breathed into him from His [created] soul and made for you hearing and vision and hearts [i.e., intellect]; little are you grateful. ([32] As-Sajdah : 9)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

फिर उस (के पुतले) को दुरुस्त किया और उसमें अपनी तरफ से रुह फूँकी और तुम लोगों के (सुनने के) लिए कान और (देखने के लिए) ऑंखें और (समझने के लिए) दिल बनाएँ (इस पर भी) तुम लोग बहुत कम शुक्र करते हो