فَاَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّيْنِ حَنِيْفًاۗ فِطْرَتَ اللّٰهِ الَّتِيْ فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَاۗ لَا تَبْدِيْلَ لِخَلْقِ اللّٰهِ ۗذٰلِكَ الدِّيْنُ الْقَيِّمُۙ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُوْنَۙ ( الروم: ٣٠ )
Faaqim wajhaka lilddeeni haneefan fitrata Allahi allatee fatara alnnasa 'alayha la tabdeela likhalqi Allahi thalika alddeenu alqayyimu walakinna akthara alnnasi la ya'lamoona (ar-Rūm 30:30)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
अतः एक ओर का होकर अपने रुख़ को 'दीन' (धर्म) की ओर जमा दो, अल्लाह की उस प्रकृति का अनुसरण करो जिसपर उसने लोगों को पैदा किया। अल्लाह की बनाई हुई संरचना बदली नहीं जा सकती। यही सीधा और ठीक धर्म है, किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं।
English Sahih:
So direct your face [i.e., self] toward the religion, inclining to truth. [Adhere to] the fitrah of Allah upon which He has created [all] people. No change should there be in the creation of Allah. That is the correct religion, but most of the people do not know. ([30] Ar-Rum : 30)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
तो (ऐ रसूल) तुम बातिल से कतरा के अपना रुख़ दीन की तरफ किए रहो यही ख़ुदा की बनावट है जिस पर उसने लोगों को पैदा किया है ख़ुदा की (दुरुस्त की हुई) बनावट में तग़य्युर तबद्दुल (उलट फेर) नहीं हो सकता यही मज़बूत और (बिल्कुल सीधा) दीन है मगर बहुत से लोग नहीं जानते हैं