فِيْهِ اٰيٰتٌۢ بَيِّنٰتٌ مَّقَامُ اِبْرٰهِيْمَ ەۚ وَمَنْ دَخَلَهٗ كَانَ اٰمِنًا ۗ وَلِلّٰهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ اِلَيْهِ سَبِيْلًا ۗ وَمَنْ كَفَرَ فَاِنَّ اللّٰهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعٰلَمِيْنَ ( آل عمران: ٩٧ )
Feehi ayatun bayyinatun maqamu ibraheema waman dakhalahu kana aminan walillahi 'ala alnnasi hijju albayti mani istata'a ilayhi sabeelan waman kafara fainna Allaha ghaniyyun 'ani al'alameena (ʾĀl ʿImrān 3:97)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
'उसमें स्पष्ट निशानियाँ है, वह इबराहीम का स्थल है। और जिसने उसमें प्रवेश किया, वह निश्चिन्त हो गया। लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको वहाँ तक पहुँचने की सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज करे, और जिसने इनकार किया तो (इस इनकार से अल्लाह का कुछ नहीं बिगड़ता) अल्लाह तो सारे संसार से निरपेक्ष है।'
English Sahih:
In it are clear signs [such as] the standing place of Abraham. And whoever enters it [i.e., the Haram] shall be safe. And [due] to Allah from the people is a pilgrimage to the House – for whoever is able to find thereto a way. But whoever disbelieves [i.e., refuses] – then indeed, Allah is free from need of the worlds. ([3] Ali 'Imran : 97)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
इसमें (हुरमत की) बहुत सी वाज़े और रौशन निशानियॉ हैं (उनमें से) मुक़ाम इबराहीम है (जहॉ आपके क़दमों का पत्थर पर निशान है) और जो इस घर में दाख़िल हुआ अमन में आ गया और लोगों पर वाजिब है कि महज़ ख़ुदा के लिए ख़ानाए काबा का हज करें जिन्हे वहां तक पहुँचने की इस्तेताअत है और जिसने बावजूद कुदरत हज से इन्कार किया तो (याद रखे) कि ख़ुदा सारे जहॉन से बेपरवा है