اِنَّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا وَمَاتُوْا وَهُمْ كُفَّارٌ فَلَنْ يُّقْبَلَ مِنْ اَحَدِهِمْ مِّلْءُ الْاَرْضِ ذَهَبًا وَّلَوِ افْتَدٰى بِهٖۗ اُولٰۤىِٕكَ لَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ وَّمَا لَهُمْ مِّنْ نّٰصِرِيْنَ ࣖ ۔ ( آل عمران: ٩١ )
Inna allatheena kafaroo wamatoo wahum kuffarun falan yuqbala min ahadihim milo alardi thahaban walawi iftada bihi olaika lahum 'athabun aleemun wama lahum min nasireena (ʾĀl ʿImrān 3:91)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
निस्संदेह जिन लोगों ने इनकार किया और इनकार ही की दशा में मरे, तो उनमें किसी से धरती के बराबर सोना भी, यदि उसने प्राण-मुक्ति के लिए दिया हो, कदापि स्वीकार नहीं किया जाएगा। ऐसे लोगों के लिए दुखद यातना है और उनका कोई सहायक न होगा
English Sahih:
Indeed, those who disbelieve and die while they are disbelievers – never would the [whole] capacity of the earth in gold be accepted from one of them if he would [seek to] ransom himself with it. For those there will be a painful punishment, and they will have no helpers. ([3] Ali 'Imran : 91)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तियार किया और कुफ़्र की हालत में मर गये तो अगरचे इतना सोना भी किसी की गुलू ख़लासी (छुटकारा पाने) में दिया जाए कि ज़मीन भर जाए तो भी हरगिज़ न कुबूल किया जाएगा यही लोग हैं जिनके लिए दर्दनाक अज़ाब होगा और उनका कोई मददगार भी न होगा