وَمَنْ يَّبْتَغِ غَيْرَ الْاِسْلَامِ دِيْنًا فَلَنْ يُّقْبَلَ مِنْهُۚ وَهُوَ فِى الْاٰخِرَةِ مِنَ الْخٰسِرِيْنَ ( آل عمران: ٨٥ )
And whoever
وَمَن
और जो कोई
seeks
يَبْتَغِ
चाहेगा
other than
غَيْرَ
सिवाय
[the] Islam
ٱلْإِسْلَٰمِ
इस्लाम के
(as) religion
دِينًا
कोई दीन
then never
فَلَن
तो हरगिज़ नहीं
will be accepted
يُقْبَلَ
वो क़ुबूल किया जाएगा
from him
مِنْهُ
उससे
and he
وَهُوَ
और वो
in
فِى
आख़िरत में
the Hereafter
ٱلْءَاخِرَةِ
आख़िरत में
(will be) from
مِنَ
ख़सारा पाने वालों में से होगा
the losers
ٱلْخَٰسِرِينَ
ख़सारा पाने वालों में से होगा
Waman yabtaghi ghayra alislami deenan falan yuqbala minhu wahuwa fee alakhirati mina alkhasireena (ʾĀl ʿImrān 3:85)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जो इस्लाम के अतिरिक्त कोई और दीन (धर्म) तलब करेगा तो उसकी ओर से कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। और आख़िरत में वह घाटा उठानेवालों में से होगा
English Sahih:
And whoever desires other than IsLam as religion – never will it be accepted from him, and he, in the Hereafter, will be among the losers. ([3] Ali 'Imran : 85)