مَا كَانَ لِبَشَرٍ اَنْ يُّؤْتِيَهُ اللّٰهُ الْكِتٰبَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ ثُمَّ يَقُوْلَ لِلنَّاسِ كُوْنُوْا عِبَادًا لِّيْ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَلٰكِنْ كُوْنُوْا رَبَّانِيّٖنَ بِمَا كُنْتُمْ تُعَلِّمُوْنَ الْكِتٰبَ وَبِمَا كُنْتُمْ تَدْرُسُوْنَ ۙ ( آل عمران: ٧٩ )
Ma kana libasharin an yutiyahu Allahu alkitaba waalhukma waalnnubuwwata thumma yaqoola lilnnasi koonoo 'ibadan lee min dooni Allahi walakin koonoo rabbaniyyeena bima kuntum tu'allimoona alkitaba wabima kuntum tadrusoona (ʾĀl ʿImrān 3:79)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
किसी मनुष्य के लिए यह सम्भव न था कि अल्लाह उसे किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) और पैग़म्बरी प्रदान करे और वह लोगों से कहने लगे, 'तुम अल्लाह को छोड़कर मेरे उपासक बनो।' बल्कि वह तो यही कहेगा कि, 'तुम रबवाले बनो, इसलिए कि तुम किताब की शिक्षा देते हो और इसलिए कि तुम स्वयं भी पढ़ते हो।'
English Sahih:
It is not for a human [prophet] that Allah should give him the Scripture and authority and prophethood and then he would say to the people, "Be servants to me rather than Allah," but [instead, he would say], "Be pious scholars of the Lord because of what you have taught of the Scripture and because of what you have studied." ([3] Ali 'Imran : 79)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
किसी आदमी को ये ज़ेबा न था कि ख़ुदा तो उसे (अपनी) किताब और हिकमत और नबूवत अता फ़रमाए और वह लोगों से कहता फिरे कि ख़ुदा को छोड़कर मेरे बन्दे बन जाओ बल्कि (वह तो यही कहेगा कि) तुम अल्लाह वाले बन जाओ क्योंकि तुम तो (हमेशा) किताबे ख़ुदा (दूसरो) को पढ़ाते रहते हो और तुम ख़ुद भी सदा पढ़ते रहे हो