هٰٓاَنْتُمْ هٰٓؤُلَاۤءِ حَاجَجْتُمْ فِيْمَا لَكُمْ بِهٖ عِلْمٌ فَلِمَ تُحَاۤجُّوْنَ فِيْمَا لَيْسَ لَكُمْ بِهٖ عِلْمٌ ۗ وَاللّٰهُ يَعْلَمُ واَنْتُمْ لَا تَعْلَمُوْنَ ( آل عمران: ٦٦ )
Haantum haolai hajajtum feema lakum bihi 'ilmun falima tuhajjoona feema laysa lakum bihi 'ilmun waAllahu ya'lamu waantum la ta'lamoona (ʾĀl ʿImrān 3:66)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
'ये तुम लोग हो कि उसके विषय में वाद-विवाद कर चुके जिसका तुम्हें कुछ ज्ञान था। अब उसके विषय में क्यों वाद-विवाद करते हो, जिसके विषय में तुम्हें कुछ भी ज्ञान नहीं? अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते'
English Sahih:
Here you are – those who have argued about that of which you have [some] knowledge, but why do you argue about that of which you have no knowledge? And Allah knows, while you know not. ([3] Ali 'Imran : 66)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते? (ऐ लो अरे) तुम वही एहमक़ लोग हो कि जिस का तुम्हें कुछ इल्म था उसमें तो झगड़ा कर चुके (खैर) फिर तब उसमें क्या (ख्वाह मा ख्वाह) झगड़ने बैठे हो जिसकी (सिरे से) तुम्हें कुछ ख़बर नहीं और (हकॣक़ते हाल तो) खुदा जानता है और तुम नहीं जानते