قُلْ يٰٓاَهْلَ الْكِتٰبِ تَعَالَوْا اِلٰى كَلِمَةٍ سَوَاۤءٍۢ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ اَلَّا نَعْبُدَ اِلَّا اللّٰهَ وَلَا نُشْرِكَ بِهٖ شَيْـًٔا وَّلَا يَتَّخِذَ بَعْضُنَا بَعْضًا اَرْبَابًا مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۗ فَاِنْ تَوَلَّوْا فَقُوْلُوا اشْهَدُوْا بِاَنَّا مُسْلِمُوْنَ ( آل عمران: ٦٤ )
Qul ya ahla alkitabi ta'alaw ila kalimatin sawain baynana wabaynakum alla na'buda illa Allaha wala nushrika bihi shayan wala yattakhitha ba'duna ba'dan arbaban min dooni Allahi fain tawallaw faqooloo ishhadoo bianna muslimoona (ʾĀl ʿImrān 3:64)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
कहो, 'ऐ किताबवालो! आओ एक ऐसी बात की ओर जिसे हमारे और तुम्हारे बीच समान मान्यता प्राप्त है; यह कि हम अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करें और न उसके साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ और न परस्पर हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह से हटकर रब बनाए।' फिर यदि वे मुँह मोड़े तो कह दो, 'गवाह रहो, हम तो मुस्लिम (आज्ञाकारी) है।'
English Sahih:
Say, "O People of the Scripture, come to a word that is equitable between us and you – that we will not worship except Allah and not associate anything with Him and not take one another as lords instead of Allah." But if they turn away, then say, "Bear witness that we are Muslims [submitting to Him]." ([3] Ali 'Imran : 64)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
फिर अगर इससे भी मुंह फेरें तो (कुछ) परवाह (नहीं) ख़ुदा फ़सादी लोगों को खूब जानता है (ऐ रसूल) तुम (उनसे) कहो कि ऐ अहले किताब तुम ऐसी (ठिकाने की) बात पर तो आओ जो हमारे और तुम्हारे दरमियान यकसॉ है कि खुदा के सिवा किसी की इबादत न करें और किसी चीज़ को उसका शरीक न बनाएं और ख़ुदा के सिवा हममें से कोई किसी को अपना परवरदिगार न बनाए अगर इससे भी मुंह मोडें तो तुम गवाह रहना हम (ख़ुदा के) फ़रमाबरदार हैं