لَا يَتَّخِذِ الْمُؤْمِنُوْنَ الْكٰفِرِيْنَ اَوْلِيَاۤءَ مِنْ دُوْنِ الْمُؤْمِنِيْنَۚ وَمَنْ يَّفْعَلْ ذٰلِكَ فَلَيْسَ مِنَ اللّٰهِ فِيْ شَيْءٍ اِلَّآ اَنْ تَتَّقُوْا مِنْهُمْ تُقٰىةً ۗ وَيُحَذِّرُكُمُ اللّٰهُ نَفْسَهٗ ۗ وَاِلَى اللّٰهِ الْمَصِيْرُ ( آل عمران: ٢٨ )
La yattakhithi almuminoona alkafireena awliyaa min dooni almumineena waman yaf'al thalika falaysa mina Allahi fee shayin illa an tattaqoo minhum tuqatan wayuhaththirukumu Allahu nafsahu waila Allahi almaseeru (ʾĀl ʿImrān 3:28)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
ईमानवालों को चाहिए कि वे ईमानवालों से हटकर इनकारवालों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाएँ, और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई सम्बन्ध नहीं, क्योंकि उससे सम्बद्ध यही बात है कि तुम उनसे बचो, जिस प्रकार वे तुमसे बचते है। और अल्लाह तुम्हें अपने आपसे डराता है, और अल्लाह ही की ओर लौटना है
English Sahih:
Let not believers take disbelievers as allies [i.e., supporters or protectors] rather than believers. And whoever [of you] does that has nothing [i.e., no association] with Allah, except when taking precaution against them in prudence. And Allah warns you of Himself, and to Allah is the [final] destination. ([3] Ali 'Imran : 28)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
मोमिनीन मोमिनीन को छोड़ के काफ़िरों को अपना सरपरस्त न बनाऐं और जो ऐसा करेगा तो उससे ख़ुदा से कुछ सरोकार नहीं मगर (इस क़िस्म की तदबीरों से) किसी तरह उन (के शर) से बचना चाहो तो (ख़ैर) और ख़ुदा तुमको अपने ही से डराता है और ख़ुदा ही की तरफ़ लौट कर जाना है