اَلَمْ تَرَ اِلَى الَّذِيْنَ اُوْتُوْا نَصِيْبًا مِّنَ الْكِتٰبِ يُدْعَوْنَ اِلٰى كِتٰبِ اللّٰهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ يَتَوَلّٰى فَرِيْقٌ مِّنْهُمْ وَهُمْ مُّعْرِضُوْنَ ( آل عمران: ٢٣ )
Alam tara ila allatheena ootoo naseeban mina alkitabi yud'awna ila kitabi Allahi liyahkuma baynahum thumma yatawalla fareequn minhum wahum mu'ridoona (ʾĀl ʿImrān 3:23)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें ईश-ग्रंथ का एक हिस्सा प्रदान हुआ। उन्हें अल्लाह की किताब की ओर बुलाया जाता है कि वह उनके बीच निर्णय करे, फिर भी उनका एक गिरोह (उसकी) उपेक्षा करते हुए मुँह फेर लेता है?
English Sahih:
Do you not consider, [O Muhammad], those who were given a portion of the Scripture? They are invited to the Scripture of Allah that it should arbitrate between them; then a party of them turns away, and they are refusing. ([3] Ali 'Imran : 23)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(ऐ रसूल) क्या तुमने (उलमाए यहूद) के हाल पर नज़र नहीं की जिनको किताब (तौरेत) का एक हिस्सा दिया गया था (अब) उनको किताबे ख़ुदा की तरफ़ बुलाया जाता है ताकि वही (किताब) उनके झगड़ें का फैसला कर दे इस पर भी उनमें का एक गिरोह मुंह फेर लेता है और यही लोग रूगरदानी (मुँह फेरने) करने वाले हैं