فَاِنْ حَاۤجُّوْكَ فَقُلْ اَسْلَمْتُ وَجْهِيَ لِلّٰهِ وَمَنِ اتَّبَعَنِ ۗوَقُلْ لِّلَّذِيْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ وَالْاُمِّيّٖنَ ءَاَسْلَمْتُمْ ۗ فَاِنْ اَسْلَمُوْا فَقَدِ اهْتَدَوْا ۚ وَاِنْ تَوَلَّوْا فَاِنَّمَا عَلَيْكَ الْبَلٰغُ ۗ وَاللّٰهُ بَصِيْرٌۢ بِالْعِبَادِ ࣖ ( آل عمران: ٢٠ )
Fain hajjooka faqul aslamtu wajhiya lillahi wamani ittaba'ani waqul lillatheena ootoo alkitaba waalommiyyeena aaslamtum fain aslamoo faqadi ihtadaw wain tawallaw fainnama 'alayka albalaghu waAllahu baseerun bial'ibadi (ʾĀl ʿImrān 3:20)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
अब यदि वे तुमसे झगड़े तो कह दो, 'मैंने और मेरे अनुयायियों ने तो अपने आपको अल्लाह के हवाले कर दिया हैं।' और जिन्हें किताब मिली थी और जिनके पास किताब नहीं है, उनसे कहो, 'क्या तुम भी इस्लाम को अपनाते हो?' यदि वे इस्लाम को अंगीकार कर लें तो सीधा मार्ग पर गए। और यदि मुँह मोड़े तो तुमपर केवल (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है। और अल्लाह स्वयं बन्दों को देख रहा है
English Sahih:
So if they argue with you, say, "I have submitted myself to Allah [in IsLam], and [so have] those who follow me." And say to those who were given the Scripture and [to] the unlearned, "Have you submitted yourselves?" And if they submit [in IsLam], they are rightly guided; but if they turn away – then upon you is only the [duty of] notification. And Allah is Seeing of [His] servants. ([3] Ali 'Imran : 20)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(ऐ रसूल) पस अगर ये लोग तुमसे (ख्वाह मा ख्वाह) हुज्जत करे तो कह दो मैंने ख़ुदा के आगे अपना सरे तस्लीम ख़म कर दिया है और जो मेरे ताबे है (उन्होंने) भी) और ऐ रसूल तुम अहले किताब और जाहिलों से पूंछो कि क्या तुम भी इस्लाम लाए हो (या नही) पस अगर इस्लाम लाए हैं तो बेख़टके राहे रास्त पर आ गए और अगर मुंह फेरे तो (ऐ रसूल) तुम पर सिर्फ़ पैग़ाम (इस्लाम) पहुंचा देना फ़र्ज़ है (बस) और ख़ुदा (अपने बन्दों) को देख रहा है