وَلَا يَحْسَبَنَّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اَنَّمَا نُمْلِيْ لَهُمْ خَيْرٌ لِّاَنْفُسِهِمْ ۗ اِنَّمَا نُمْلِيْ لَهُمْ لِيَزْدَادُوْٓا اِثْمًا ۚ وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّهِيْنٌ ( آل عمران: ١٧٨ )
Wala yahsabanna allatheena kafaroo annama numlee lahum khayrun lianfusihim innama numlee lahum liyazdadoo ithman walahum 'athabun muheenun (ʾĀl ʿImrān 3:178)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और यह ढ़ील जो हम उन्हें दिए जाते है, इसे अधर्मी लोग अपने लिए अच्छा न समझे। यह ढील तो हम उन्हें सिर्फ़ इसलिए दे रहे है कि वे गुनाहों में और अधिक बढ़ जाएँ, और उनके लिए तो अत्यन्त अपमानजनक यातना है
English Sahih:
And let not those who disbelieve ever think that [because] We extend their time [of enjoyment] it is better for them. We only extend it for them so that they may increase in sin, and for them is a humiliating punishment. ([3] Ali 'Imran : 178)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तियार किया वह हरगिज़ ये न ख्याल करें कि हमने जो उनको मोहलत व बेफिक्री दे रखी है वह उनके हक़ में बेहतर है (हालॉकि) हमने मोहल्लत व बेफिक्री सिर्फ इस वजह से दी है ताकि वह और ख़ूब गुनाह कर लें और (आख़िर तो) उनके लिए रूसवा करने वाला अज़ाब है