وَمَآ اَصَابَكُمْ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعٰنِ فَبِاِذْنِ اللّٰهِ وَلِيَعْلَمَ الْمُؤْمِنِيْنَۙ ( آل عمران: ١٦٦ )
And what
وَمَآ
और जो कुछ
struck you
أَصَٰبَكُمْ
पहुँचा तुम्हें
(on the) day
يَوْمَ
जिस दिन
(when) met
ٱلْتَقَى
आमने सामने हुईं
the two hosts
ٱلْجَمْعَانِ
दो जमाअतें
by (the) permission
فَبِإِذْنِ
पस अल्लाह के इज़्न से था
(of) Allah
ٱللَّهِ
पस अल्लाह के इज़्न से था
and that He (might) make evident
وَلِيَعْلَمَ
और ताकि वो जान ले
the believers
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों को
Wama asabakum yawma iltaqa aljam'ani fabiithni Allahi waliya'lama almumineena (ʾĀl ʿImrān 3:166)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और दोनों गिरोह की मुठभेड़ के दिन जो कुछ तुम्हारे सामने आया वह अल्लाह ही की अनुज्ञा से आया और इसलिए कि वह जान ले कि ईमानवाले कौन है
English Sahih:
And what struck you on the day the two armies met [at Uhud] was by permission of Allah that He might make evident the [true] believers ([3] Ali 'Imran : 166)