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فَبِمَا رَحْمَةٍ مِّنَ اللّٰهِ لِنْتَ لَهُمْ ۚ وَلَوْ كُنْتَ فَظًّا غَلِيْظَ الْقَلْبِ لَانْفَضُّوْا مِنْ حَوْلِكَ ۖ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمْ وَشَاوِرْهُمْ فِى الْاَمْرِۚ فَاِذَا عَزَمْتَ فَتَوَكَّلْ عَلَى اللّٰهِ ۗ اِنَّ اللّٰهَ يُحِبُّ الْمُتَوَكِّلِيْنَ  ( آل عمران: ١٥٩ )

So because
فَبِمَا
फिर बवजह
(of) Mercy
رَحْمَةٍ
रहमत के
from
مِّنَ
अल्लाह की तरफ़ से
Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह की तरफ़ से
you dealt gently
لِنتَ
नर्म हो गए आप
with them
لَهُمْۖ
उनके लिए
And if
وَلَوْ
और अगर
you had been
كُنتَ
होते आप
rude
فَظًّا
तुन्दख़ू
(and) harsh
غَلِيظَ
सख़्त
(at) [the] heart
ٱلْقَلْبِ
दिल
surely they (would have) dispersed
لَٱنفَضُّوا۟
अलबत्ता वो मुन्तशिर हो जाते
from
مِنْ
आपके आस पास से
around you
حَوْلِكَۖ
आपके आस पास से
Then pardon
فَٱعْفُ
पस दरगुज़र कीजिए
[from] them
عَنْهُمْ
उनसे
and ask forgiveness
وَٱسْتَغْفِرْ
और बख़्शिश माँगिए
for them
لَهُمْ
उनके लिए
and consult them
وَشَاوِرْهُمْ
और मशवरा कीजिए उनसे
in
فِى
मामले में
the matter
ٱلْأَمْرِۖ
मामले में
Then when
فَإِذَا
फिर जब
you have decided
عَزَمْتَ
पुख़्ता इरादा करें आप
then put trust
فَتَوَكَّلْ
तो तवक्कल कीजिए
on
عَلَى
अल्लाह पर
Allah
ٱللَّهِۚ
अल्लाह पर
Indeed
إِنَّ
बेशक
Allah
ٱللَّهَ
अल्लाह
loves
يُحِبُّ
मोहब्बत रखता है
the ones who put trust (in Him)
ٱلْمُتَوَكِّلِينَ
तवक्कल करने वालों से

Fabima rahmatin mina Allahi linta lahum walaw kunta faththan ghaleetha alqalbi lainfaddoo min hawlika fao'fu 'anhum waistaghfir lahum washawirhum fee alamri faitha 'azamta fatawakkal 'ala Allahi inna Allaha yuhibbu almutawakkileena (ʾĀl ʿImrān 3:159)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

(तुमने तो अपनी दयालुता से उन्हें क्षमा कर दिया) तो अल्लाह की ओर से ही बड़ी दयालुता है जिसके कारण तुम उनके लिए नर्म रहे हो, यदि कहीं तुम स्वभाव के क्रूर और कठोर हृदय होते तो ये सब तुम्हारे पास से छँट जाते। अतः उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो। और मामलों में उनसे परामर्श कर लिया करो। फिर जब तुम्हारे संकल्प किसी सम्मति पर सुदृढ़ हो जाएँ तो अल्लाह पर भरोसा करो। निस्संदेह अल्लाह को वे लोग प्रिय है जो उसपर भरोसा करते है

English Sahih:

So by mercy from Allah, [O Muhammad], you were lenient with them. And if you had been rude [in speech] and harsh in heart, they would have disbanded from about you. So pardon them and ask forgiveness for them and consult them in the matter. And when you have decided, then rely upon Allah. Indeed, Allah loves those who rely [upon Him]. ([3] Ali 'Imran : 159)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

(तो ऐ रसूल ये भी) ख़ुदा की एक मेहरबानी है कि तुम (सा) नरमदिल (सरदार) उनको मिला और तुम अगर बदमिज़ाज और सख्त दिल होते तब तो ये लोग (ख़ुदा जाने कब के) तुम्हारे गिर्द से तितर बितर हो गए होते पस (अब भी) तुम उनसे दरगुज़र करो और उनके लिए मग़फेरत की दुआ मॉगो और (साबिक़ दस्तूरे ज़ाहिरा) उनसे काम काज में मशवरा कर लिया करो (मगर) इस पर भी जब किसी काम को ठान लो तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखो (क्योंकि जो लोग ख़ुदा पर भरोसा रखते हैं ख़ुदा उनको ज़रूर दोस्त रखता है