۞ اِذْ تُصْعِدُوْنَ وَلَا تَلْوٗنَ عَلٰٓى اَحَدٍ وَّالرَّسُوْلُ يَدْعُوْكُمْ فِيْٓ اُخْرٰىكُمْ فَاَثَابَكُمْ غَمًّا ۢبِغَمٍّ لِّكَيْلَا تَحْزَنُوْا عَلٰى مَا فَاتَكُمْ وَلَا مَآ اَصَابَكُمْ ۗ وَاللّٰهُ خَبِيْرٌ ۢبِمَا تَعْمَلُوْنَ ( آل عمران: ١٥٣ )
Ith tus'idoona wala talwoona 'ala ahadin waalrrasoolu yad'ookum fee okhrakum faathabakum ghamman bighammin likayla tahzanoo 'ala ma fatakum wala ma asabakum waAllahu khabeerun bima ta'maloona (ʾĀl ʿImrān 3:153)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जब तुम लोग दूर भागे चले जा रहे थे और किसी को मुड़कर देखते तक न थे और रसूल तुम्हें पुकार रहा था, जबकि वह तुम्हारी दूसरी टुकड़ी के साथ था (जो भागी नहीं), तो अल्लाह ने तुम्हें शोक पर शोक दिया, ताकि तुम्हारे हाथ से कोई चीज़ निकल जाए या तुमपर कोई मुसीबत आए तो तुम शोकाकुल न हो। और जो कुछ भी तुम करते हो, अल्लाह उसकी भली-भाँति ख़बर रखता है
English Sahih:
[Remember] when you [fled and] climbed [the mountain] without looking aside at anyone while the Messenger was calling you from behind. So Allah repaid you with distress upon distress so you would not grieve for that which had escaped you [of victory and spoils of war] or [for] that which had befallen you [of injury and death]. And Allah is [fully] Aware of what you do. ([3] Ali 'Imran : 153)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(मुसलमानों तुम) उस वक्त क़ो याद करके शर्माओ जब तुम (बदहवास) भागे पहाड़ पर चले जाते थे पस (चूंकि) रसूल को तुमने (आज़ारदा) किया ख़ुदा ने भी तुमको (इस) रंज की सज़ा में (शिकस्त का) रंज दिया ताकि जब कभी तुम्हारी कोई चीज़ हाथ से जाती रहे या कोई मुसीबत पड़े तो तुम रंज न करो और सब्र करना सीखो और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है