Skip to main content

وَمَا كَانَ قَوْلَهُمْ اِلَّآ اَنْ قَالُوْا رَبَّنَا اغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَا وَاِسْرَافَنَا فِيْٓ اَمْرِنَا وَثَبِّتْ اَقْدَامَنَا وَانْصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكٰفِرِيْنَ   ( آل عمران: ١٤٧ )

And not
وَمَا
और ना
were
كَانَ
थी
their words
قَوْلَهُمْ
बात उनकी
except
إِلَّآ
मगर
that
أَن
ये कि
they said
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
"Our Lord
رَبَّنَا
ऐ हमारे रब
forgive
ٱغْفِرْ
बख़्श दे हमारे लिए
for us
لَنَا
बख़्श दे हमारे लिए
our sins
ذُنُوبَنَا
गुनाह हमारे
and our excesses
وَإِسْرَافَنَا
और ज़्यादतियाँ हमारी
in
فِىٓ
हमारे मामले में
our affairs
أَمْرِنَا
हमारे मामले में
and make firm
وَثَبِّتْ
और जमा दे
our feet
أَقْدَامَنَا
हमारे क़दमों को
and give us victory
وَٱنصُرْنَا
और मदद फ़रमा हमारी
against
عَلَى
ऊपर उन लोगों के
[the people]
ٱلْقَوْمِ
ऊपर उन लोगों के
the disbelievers"
ٱلْكَٰفِرِينَ
जो काफ़िर हैं

Wama kana qawlahum illa an qaloo rabbana ighfir lana thunoobana waisrafana fee amrina wathabbit aqdamana waonsurna 'ala alqawmi alkafireena (ʾĀl ʿImrān 3:147)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

उन्होंने कुछ नहीं कहा सिवाय इसके कि 'ऐ हमारे रब! तू हमारे गुनाहों को और हमारे अपने मामले में जो ज़्यादती हमसे हो गई हो, उसे क्षमा कर दे और हमारे क़दम जमाए रख, और इनकार करनेवाले लोगों के मुक़ाबले में हमारी सहायता कर।'

English Sahih:

And their words were not but that they said, "Our Lord, forgive us our sins and the excess [committed] in our affairs and plant firmly our feet and give us victory over the disbelieving people." ([3] Ali 'Imran : 147)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और लुत्फ़ ये है कि उनका क़ौल इसके सिवा कुछ न था कि दुआएं मॉगने लगें कि ऐ हमारे पालने वाले हमारे गुनाह और अपने कामों में हमारी ज्यादतियॉ माफ़ कर और दुश्मनों के मुक़ाबले में हमको साबित क़दम रख और काफ़िरों के गिरोह पर हमको फ़तेह दे