اِنْ يَّمْسَسْكُمْ قَرْحٌ فَقَدْ مَسَّ الْقَوْمَ قَرْحٌ مِّثْلُهٗ ۗوَتِلْكَ الْاَيَّامُ نُدَاوِلُهَا بَيْنَ النَّاسِۚ وَلِيَعْلَمَ اللّٰهُ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَيَتَّخِذَ مِنْكُمْ شُهَدَاۤءَ ۗوَاللّٰهُ لَا يُحِبُّ الظّٰلِمِيْنَۙ ( آل عمران: ١٤٠ )
In yamsaskum qarhun faqad massa alqawma qarhun mithluhu watilka alayyamu nudawiluha bayna alnnasi waliya'lama Allahu allatheena amanoo wayattakhitha minkum shuhadaa waAllahu la yuhibbu alththalimeena (ʾĀl ʿImrān 3:140)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
यदि तुम्हें आघात पहुँचे तो उन लोगों को भी ऐसा ही आघात पहुँच चुका है। ये युद्ध के दिन हैं, जिन्हें हम लोगों के बीच डालते ही रहते है और ऐसा इसलिए हुआ कि अल्लाह ईमानवालों को जान ले और तुममें से कुछ लोगों को गवाह बनाए - और अत्याचारी अल्लाह को प्रिय नहीं है
English Sahih:
If a wound should touch you – there has already touched the [opposing] people a wound similar to it. And these days [of varying conditions] We alternate among the people so that Allah may make evident those who believe and [may] take to Himself from among you martyrs – and Allah does not like the wrongdoers – ([3] Ali 'Imran : 140)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
अगर (जंगे ओहद में) तुमको ज़ख्म लगा है तो उसी तरह (बदर में) तुम्हारे फ़रीक़ (कुफ्फ़ार को) भी ज़ख्म लग चुका है (उस पर उनकी हिम्मत तो न टूटी) ये इत्तफ़ाक़ाते ज़माना हैं जो हम लोगों के दरमियान बारी बारी उलट फेर किया करते हैं और ये (इत्तफ़ाक़ी शिकस्त इसलिए थी) ताकि ख़ुदा सच्चे ईमानदारों को (ज़ाहिरी) मुसलमानों से अलग देख लें और तुममें से बाज़ को दरजाए शहादत पर फ़ायज़ करें और ख़ुदा (हुक्मे रसूल से) सरताबी करने वालों को दोस्त नहीं रखता