قَدْ كَانَ لَكُمْ اٰيَةٌ فِيْ فِئَتَيْنِ الْتَقَتَا ۗفِئَةٌ تُقَاتِلُ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ وَاُخْرٰى كَافِرَةٌ يَّرَوْنَهُمْ مِّثْلَيْهِمْ رَأْيَ الْعَيْنِ ۗوَاللّٰهُ يُؤَيِّدُ بِنَصْرِهٖ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَعِبْرَةً لِّاُولِى الْاَبْصَارِ ( آل عمران: ١٣ )
Qad kana lakum ayatun fee fiatayni iltaqata fiatun tuqatilu fee sabeeli Allahi waokhra kafiratun yarawnahum mithlayhim raya al'ayni waAllahu yuayyidu binasrihi man yashao inna fee thalika la'ibratan liolee alabsari (ʾĀl ʿImrān 3:13)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
तुम्हारे लिए उन दोनों गिरोहों में एक निशानी है जो (बद्र की) लड़ाई में एक-दूसरे के मुक़ाबिल हुए। एक गिरोह अल्लाह के मार्ग में लड़ रहा था, जबकि दूसरा विधर्मी था। ये अपनी आँखों देख रहे थे कि वे उनसे दुगने है। अल्लाह अपनी सहायता से जिसे चाहता है, शक्ति प्रदान करता है। दृष्टिवान लोगों के लिए इसमें बड़ी शिक्षा-सामग्री है
English Sahih:
Already there has been for you a sign in the two armies which met [in combat at Badr] – one fighting in the cause of Allah and another of disbelievers. They saw them [to be] twice their [own] number by [their] eyesight. But Allah supports with His victory whom He wills. Indeed in that is a lesson for those of vision. ([3] Ali 'Imran : 13)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
बेशक तुम्हारे (समझाने के) वास्ते उन दो (मुख़ालिफ़ गिरोहों में जो (बद्र की लड़ाई में) एक दूसरे के साथ गुथ गए (रसूल की सच्चाई की) बड़ी भारी निशानी है कि एक गिरोह ख़ुदा की राह में जेहाद करता था और दूसरा काफ़िरों का जिनको मुसलमान अपनी ऑख से दुगना देख रहे थे (मगर ख़ुदा ने क़लील ही को फ़तह दी) और ख़ुदा अपनी मदद से जिस की चाहता है ताईद करता है बेशक ऑख वालों के वास्ते इस वाक़ये में बड़ी इबरत है