ضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ الذِّلَّةُ اَيْنَ مَا ثُقِفُوْٓا اِلَّا بِحَبْلٍ مِّنَ اللّٰهِ وَحَبْلٍ مِّنَ النَّاسِ وَبَاۤءُوْ بِغَضَبٍ مِّنَ اللّٰهِ وَضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ الْمَسْكَنَةُ ۗ ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ كَانُوْا يَكْفُرُوْنَ بِاٰيٰتِ اللّٰهِ وَيَقْتُلُوْنَ الْاَنْبِۢيَاۤءَ بِغَيْرِ حَقٍّۗ ذٰلِكَ بِمَا عَصَوْا وَّكَانُوْا يَعْتَدُوْنَ ( آل عمران: ١١٢ )
Duribat 'alayhimu alththillatu ayna ma thuqifoo illa bihablin mina Allahi wahablin mina alnnasi wabaoo bighadabin mina Allahi waduribat 'alayhimu almaskanatu thalika biannahum kanoo yakfuroona biayati Allahi wayaqtuloona alanbiyaa bighayri haqqin thalika bima 'asaw wakanoo ya'tadoona (ʾĀl ʿImrān 3:112)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
वे जहाँ कहीं भी पाए गए उनपर ज़िल्लत (अपमान) थोप दी गई। किन्तु अल्लाह की रस्सी थामें या लोगों का रस्सी, तो और बात है। वे ल्लाह के प्रकोप के पात्र हुए और उनपर दशाहीनता थोप दी गई। यह इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार और नबियों को नाहक़ क़त्ल करते रहे है। और यह इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की और सीमोल्लंघन करते रहे
English Sahih:
They have been put under humiliation [by Allah] wherever they are overtaken, except for a rope [i.e., covenant] from Allah and a rope [i.e., treaty] from the people [i.e., the Muslims]. And they have drawn upon themselves anger from Allah and have been put under destitution. That is because they disbelieved in [i.e., rejected] the verses of Allah and killed the prophets without right. That is because they disobeyed and [habitually] transgressed. ([3] Ali 'Imran : 112)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और जहॉ कहीं हत्ते चढ़े उनपर रूसवाई की मार पड़ी मगर ख़ुदा के एहद (या) और लोगों के एहद के ज़रिये से (उनको कहीं पनाह मिल गयी) और फिर हेरफेर के खुदा के गज़ब में पड़ गए और उनपर मोहताजी की मार (अलग) पड़ी ये (क्यों) इस सबब से कि वह ख़ुदा की आयतों से इन्कार करते थे और पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल करते थे ये सज़ा उसकी है कि उन्होंने नाफ़रमानी की और हद से गुज़र गए थे