تِلْكَ اٰيٰتُ اللّٰهِ نَتْلُوْهَا عَلَيْكَ بِالْحَقِّ ۗ وَمَا اللّٰهُ يُرِيْدُ ظُلْمًا لِّلْعٰلَمِيْنَ ( آل عمران: ١٠٨ )
These
تِلْكَ
ये
(are the) Verses
ءَايَٰتُ
आयात हैं
(of) Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह की
We recite them
نَتْلُوهَا
हम पढ़ रहे हैं उन्हें
to you
عَلَيْكَ
आप पर
in truth
بِٱلْحَقِّۗ
साथ हक़ के
And not
وَمَا
और नहीं
Allah
ٱللَّهُ
अल्लाह
wants
يُرِيدُ
इरादा रखता
injustice
ظُلْمًا
किसी ज़ुल्म का
to the worlds
لِّلْعَٰلَمِينَ
जहान वालों के लिए
Tilka ayatu Allahi natlooha 'alayka bialhaqqi wama Allahu yureedu thulman lil'alameena (ʾĀl ʿImrān 3:108)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
ये अल्लाह की आयतें है, जिन्हें हम हक़ के साथ तुम्हें सुना रहे है। अल्लाह संसारवालों पर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं करना चाहता
English Sahih:
These are the verses of Allah. We recite them to you, [O Muhammad], in truth; and Allah wants no injustice to the worlds [i.e., His creatures]. ([3] Ali 'Imran : 108)