فَاِذَا رَكِبُوْا فِى الْفُلْكِ دَعَوُا اللّٰهَ مُخْلِصِيْنَ لَهُ الدِّيْنَ ەۚ فَلَمَّا نَجّٰىهُمْ اِلَى الْبَرِّ اِذَا هُمْ يُشْرِكُوْنَۙ ( العنكبوت: ٦٥ )
And when
فَإِذَا
फिर जब
they embark
رَكِبُوا۟
वो सवार होते हैं
[in]
فِى
कश्ती में
the ship
ٱلْفُلْكِ
कश्ती में
they call
دَعَوُا۟
वो पुकारते हैं
Allah
ٱللَّهَ
अल्लाह को
(being) sincere
مُخْلِصِينَ
ख़ालिस करने वाले हो कर
to Him
لَهُ
उसके लिए
(in) the religion
ٱلدِّينَ
दीन को
But when
فَلَمَّا
तो जब
He delivers them
نَجَّىٰهُمْ
वो निजात देता है उन्हें
to
إِلَى
तरफ़ ख़ुश्की के
the land
ٱلْبَرِّ
तरफ़ ख़ुश्की के
behold
إِذَا
यकायक
they
هُمْ
वो
associate partners (with Him)
يُشْرِكُونَ
वो शिर्क करने लगते हैं
Faitha rakiboo fee alfulki da'awoo Allaha mukhliseena lahu alddeena falamma najjahum ila albarri itha hum yushrikoona (al-ʿAnkabūt 29:65)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जब वे नौका में सवार होते है तो वे अल्लाह को उसके दीन (आज्ञापालन) के लिए निष्ठा वान होकर पुकारते है। किन्तु जब वह उन्हें बचाकर शु्ष्क भूमि तक ले आता है तो क्या देखते है कि वे लगे (अल्लाह का साथ) साझी ठहराने
English Sahih:
And when they board a ship, they supplicate Allah, sincere to Him in religion [i.e., faith and hope]. But when He delivers them to the land, at once they associate others with Him ([29] Al-'Ankabut : 65)