اَوَلَمْ يَكْفِهِمْ اَنَّآ اَنْزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتٰبَ يُتْلٰى عَلَيْهِمْ ۗاِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَرَحْمَةً وَّذِكْرٰى لِقَوْمٍ يُّؤْمِنُوْنَ ࣖ ( العنكبوت: ٥١ )
And is (it) not
أَوَلَمْ
क्या भला नहीं
sufficient for them
يَكْفِهِمْ
काफ़ी उन्हें
that We
أَنَّآ
बेशक हम
revealed
أَنزَلْنَا
नाज़िल की हमने
to you
عَلَيْكَ
आप पर
the Book
ٱلْكِتَٰبَ
किताब
(which) is recited
يُتْلَىٰ
जो पढ़ी जाती है
to them?
عَلَيْهِمْۚ
उन पर
Indeed
إِنَّ
बेशक
in
فِى
इस में
that
ذَٰلِكَ
इस में
surely is a mercy
لَرَحْمَةً
अलबत्ता रहमत
and a reminder
وَذِكْرَىٰ
और नसीहत है
for a people
لِقَوْمٍ
उन लोगों के लिए
who believe
يُؤْمِنُونَ
जो ईमान लाते हैं
Awalam yakfihim anna anzalna 'alayka alkitaba yutla 'alayhim inna fee thalika larahmatan wathikra liqawmin yuminoona (al-ʿAnkabūt 29:51)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
क्या उनके लिए यह पर्याप्त नहीं कि हमने तुमपर किताब अवतरित की, जो उन्हें पढ़कर सुनाई जाती है? निस्संदेह उसमें उन लोगों के लिए दयालुता है और अनुस्मृति है जो ईमान लाएँ
English Sahih:
And is it not sufficient for them that We revealed to you the Book [i.e., the Quran] which is recited to them? Indeed in that is a mercy and reminder for a people who believe. ([29] Al-'Ankabut : 51)