وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَّقُوْلُ اٰمَنَّا بِاللّٰهِ فَاِذَآ اُوْذِيَ فِى اللّٰهِ جَعَلَ فِتْنَةَ النَّاسِ كَعَذَابِ اللّٰهِ ۗوَلَىِٕنْ جَاۤءَ نَصْرٌ مِّنْ رَّبِّكَ لَيَقُوْلُنَّ اِنَّا كُنَّا مَعَكُمْۗ اَوَلَيْسَ اللّٰهُ بِاَعْلَمَ بِمَا فِيْ صُدُوْرِ الْعٰلَمِيْنَ ( العنكبوت: ١٠ )
Wamina alnnasi man yaqoolu amanna biAllahi faitha oothiya fee Allahi ja'ala fitnata alnnasi ka'athabi Allahi walain jaa nasrun min rabbika layaqoolunna inna kunna ma'akum awalaysa Allahu bia'lama bima fee sudoori al'alameena (al-ʿAnkabūt 29:10)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
लोगों में ऐसे भी है जो कहते है कि 'हम अल्लाह पर ईमान लाए,' किन्तु जब अल्लाह के मामले में वे सताए गए तो उन्होंने लोगों की ओर से आई हुई आज़माइश को अल्लाह की यातना समझ लिया। अब यदि तेरे रब की ओर से सहायता पहुँच गई तो कहेंगे, 'हम तो तुम्हारे साथ थे।' क्या जो कुछ दुनियावालों के सीनों में है उसे अल्लाह भली-भाँति नहीं जानता?
English Sahih:
And of the people are some who say, "We believe in Allah," but when one [of them] is harmed for [the cause of] Allah, he considers the trial [i.e., harm] of the people as [if it were] the punishment of Allah. But if victory comes from your Lord, they say, "Indeed, We were with you." Is not Allah most knowing of what is within the breasts of the worlds [i.e., all creatures]? ([29] Al-'Ankabut : 10)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो (ज़बान से तो) कह देते हैं कि हम ख़ुदा पर ईमान लाए फिर जब उनको ख़ुदा के बारे में कुछ तकलीफ़ पहुँची तो वह लोगों की तकलीफ़ देही को अज़ाब के बराबर ठहराते हैं और (ऐ रसूल) अगर तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की मदद आ पहुँची और तुम्हें फतेह हुई तो यही लोग कहने लगते हैं कि हम भी तो तुम्हारे साथ ही साथ थे भला जो कुछ सारे जहाँन के दिलों में है क्या ख़ुदा बख़ूबी वाक़िफ नहीं (ज़रुर है)