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وَاِذَا سَمِعُوا اللَّغْوَ اَعْرَضُوْا عَنْهُ وَقَالُوْا لَنَآ اَعْمَالُنَا وَلَكُمْ اَعْمَالُكُمْ ۖسَلٰمٌ عَلَيْكُمْ ۖ لَا نَبْتَغِى الْجٰهِلِيْنَ  ( القصص: ٥٥ )

And when
وَإِذَا
और जब
they hear
سَمِعُوا۟
वो सुनते हैं
vain talk
ٱللَّغْوَ
बेहूदा बात को
they turn away
أَعْرَضُوا۟
वो ऐराज़ करते हैं
from it
عَنْهُ
उससे
and say
وَقَالُوا۟
और वो कहते हैं
"For us
لَنَآ
हमारे लिए
our deeds
أَعْمَٰلُنَا
आमाल हमारे
and for you
وَلَكُمْ
और तुम्हारे लिए
your deeds
أَعْمَٰلُكُمْ
आमाल तुम्हारे
Peace (be)
سَلَٰمٌ
सलाम हो
on you;
عَلَيْكُمْ
तुम पर
not
لَا
नहीं हम चाहते
we seek
نَبْتَغِى
नहीं हम चाहते
the ignorant"
ٱلْجَٰهِلِينَ
जाहिलों को

Waitha sami'oo allaghwa a'radoo 'anhu waqaloo lana a'maluna walakum a'malukum salamun 'alaykum la nabtaghee aljahileena (al-Q̈aṣaṣ 28:55)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और जब वे व्यर्थ की बात सुनते है तो यह कहते हुए उससे किनारा खींच लेते है कि 'हमारे लिए हमारे कर्म है और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म है। तुमको सलाम है! ज़ाहिलों को हम नहीं चाहते।'

English Sahih:

And when they hear ill speech, they turn away from it and say, "For us are our deeds, and for you are your deeds. Peace will be upon you; we seek not the ignorant." ([28] Al-Qasas : 55)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और जब किसी से कोई बुरी बात सुनी तो उससे किनारा कश रहे और साफ कह दिया कि हमारे वास्ते हमारी कारगुज़ारियाँ हैं और तुम्हारे वास्ते तुम्हारी कारस्तानियाँ (बस दूर ही से) तुम्हें सलाम है हम जाहिलो (की सोहबत) के ख्वाहॉ नहीं