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وَاسْتَكْبَرَ هُوَ وَجُنُوْدُهٗ فِى الْاَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَظَنُّوْٓا اَنَّهُمْ اِلَيْنَا لَا يُرْجَعُوْنَ   ( القصص: ٣٩ )

And he was arrogant
وَٱسْتَكْبَرَ
और तकब्बुर किया
And he was arrogant
هُوَ
उसने
and his hosts
وَجُنُودُهُۥ
और उसके लश्करों ने
in
فِى
ज़मीन में
the land
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
without
بِغَيْرِ
बग़ैर
right
ٱلْحَقِّ
हक़ के
and they thought
وَظَنُّوٓا۟
और वो समझते थे
that they
أَنَّهُمْ
बेशक वो
to Us
إِلَيْنَا
हमारी तरफ़
not
لَا
ना वो लौटाए जाऐंगे
will be returned
يُرْجَعُونَ
ना वो लौटाए जाऐंगे

Waistakbara huwa wajunooduhu fee alardi bighayri alhaqqi wathannoo annahum ilayna la yurja'oona (al-Q̈aṣaṣ 28:39)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

उसने और उसकी सेनाओं ने धरती में नाहक़ घमंड किया और समझा कि उन्हें हमारी ओर लौटना नहीं है

English Sahih:

And he was arrogant, he and his soldiers, in the land, without right, and they thought that they would not be returned to Us. ([28] Al-Qasas : 39)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और फिरऔन और उसके लश्कर ने रुए ज़मीन में नाहक़ सर उठाया था और उन लोगों ने समझ लिया था कि हमारी बारगाह मे वह कभी पलट कर नही आएँगे