وَقَالَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اِنْ هٰذَآ اِلَّآ اِفْكُ ِۨافْتَرٰىهُ وَاَعَانَهٗ عَلَيْهِ قَوْمٌ اٰخَرُوْنَۚ فَقَدْ جَاۤءُوْ ظُلْمًا وَّزُوْرًا ۚ ( الفرقان: ٤ )
And say
وَقَالَ
और कहा
those who
ٱلَّذِينَ
उन लोगों ने जिन्होंने
disbelieve
كَفَرُوٓا۟
कुफ़्र किया
"Not
إِنْ
नहीं
this
هَٰذَآ
ये (क़ुरआन)
(is) but
إِلَّآ
मगर
a lie
إِفْكٌ
एक झूठ
he invented it
ٱفْتَرَىٰهُ
उसने गढ़ लिया उसे
and helped him
وَأَعَانَهُۥ
और मदद की उसकी
at it
عَلَيْهِ
उस पर
people
قَوْمٌ
एक दूसरी क़ौम ने
other"
ءَاخَرُونَۖ
एक दूसरी क़ौम ने
But verily
فَقَدْ
पस तहक़ीक़
they (have) produced
جَآءُو
वो लाए
an injustice
ظُلْمًا
ज़ुल्म
and a lie
وَزُورًا
और झूठ
Waqala allatheena kafaroo in hatha illa ifkun iftarahu waa'anahu 'alayhi qawmun akharoona faqad jaoo thulman wazooran (al-Furq̈ān 25:4)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जिन लोगों ने इनकार किया उनका कहना है, 'यह तो बस मनघड़ंत है जो उसने स्वयं ही घड़ लिया है। और कुछ दूसरे लोगों ने इस काम में उसकी सहायता की है।' वे तो ज़ुल्म और झूठ ही के ध्येय से आए
English Sahih:
And those who disbelieve say, "This [Quran] is not except a falsehood he invented, and another people assisted him in it." But they have committed an injustice and a lie. ([25] Al-Furqan : 4)