لَا تَجْعَلُوْا دُعَاۤءَ الرَّسُوْلِ بَيْنَكُمْ كَدُعَاۤءِ بَعْضِكُمْ بَعْضًاۗ قَدْ يَعْلَمُ اللّٰهُ الَّذِيْنَ يَتَسَلَّلُوْنَ مِنْكُمْ لِوَاذًاۚ فَلْيَحْذَرِ الَّذِيْنَ يُخَالِفُوْنَ عَنْ اَمْرِهٖٓ اَنْ تُصِيْبَهُمْ فِتْنَةٌ اَوْ يُصِيْبَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ ( النور: ٦٣ )
La taj'aloo du'aa alrrasooli baynakum kadu'ai ba'dikum ba'dan qad ya'lamu Allahu allatheena yatasallaloona minkum liwathan falyahthari allatheena yukhalifoona 'an amrihi an tuseebahum fitnatun aw yuseebahum 'athabun aleemun (an-Nūr 24:63)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
अपने बीच रसूल के बुलाने को तुम आपस में एक-दूसरे जैसा बुलाना न समझना। अल्लाह उन लोगों को भली-भाँति जानता है जो तुममें से ऐसे है कि (एक-दूसरे की) आड़ लेकर चुपके से खिसक जाते है। अतः उनको, जो उसके आदेश की अवहेलना करते है, डरना चाहिए कि कही ऐसा न हो कि उनपर कोई आज़माइश आ पड़े या उनपर कोई दुखद यातना आ जाए
English Sahih:
Do not make [your] calling of the Messenger among yourselves as the call of one of you to another. Already Allah knows those of you who slip away, concealed by others. So let those beware who dissent from his [i.e., the Prophet's] order, lest fitnah strike them or a painful punishment. ([24] An-Nur : 63)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(ऐ ईमानदारों) जिस तरह तुम में से एक दूसरे को (नाम ले कर) बुलाया करते हैं उस तरह आपस में रसूल का बुलाना न समझो ख़ुदा उन लोगों को खूब जानता है जो तुम में से ऑंख बचा के (पैग़म्बर के पास से) खिसक जाते हैं- तो जो लोग उसके हुक्म की मुख़ालफत करते हैं उनको इस बात से डरते रहना चाहिए कि (मुबादा) उन पर कोई मुसीबत आ पडे या उन पर कोई दर्दनाक अज़ाब नाज़िल हो