لَيْسَ عَلَى الْاَعْمٰى حَرَجٌ وَّلَا عَلَى الْاَعْرَجِ حَرَجٌ وَّلَا عَلَى الْمَرِيْضِ حَرَجٌ وَّلَا عَلٰٓى اَنْفُسِكُمْ اَنْ تَأْكُلُوْا مِنْۢ بُيُوْتِكُمْ اَوْ بُيُوْتِ اٰبَاۤىِٕكُمْ اَوْ بُيُوْتِ اُمَّهٰتِكُمْ اَوْ بُيُوْتِ اِخْوَانِكُمْ اَوْ بُيُوْتِ اَخَوٰتِكُمْ اَوْ بُيُوْتِ اَعْمَامِكُمْ اَوْ بُيُوْتِ عَمّٰتِكُمْ اَوْ بُيُوْتِ اَخْوَالِكُمْ اَوْ بُيُوْتِ خٰلٰتِكُمْ اَوْ مَا مَلَكْتُمْ مَّفَاتِحَهٗٓ اَوْ صَدِيْقِكُمْۗ لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ اَنْ تَأْكُلُوْا جَمِيْعًا اَوْ اَشْتَاتًاۗ فَاِذَا دَخَلْتُمْ بُيُوْتًا فَسَلِّمُوْا عَلٰٓى اَنْفُسِكُمْ تَحِيَّةً مِّنْ عِنْدِ اللّٰهِ مُبٰرَكَةً طَيِّبَةً ۗ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللّٰهُ لَكُمُ الْاٰيٰتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُوْنَ ࣖ ( النور: ٦١ )
Laysa 'ala ala'ma harajun wala 'ala ala'raji harajun wala 'ala almareedi harajun wala 'ala anfusikum an takuloo min buyootikum aw buyooti abaikum aw buyooti ommahatikum aw buyooti ikhwanikum aw buyooti akhawatikum aw buyooti a'mamikum aw buyooti 'ammatikum aw buyooti akhwalikum aw buyooti khalatikum aw ma malaktum mafatihahu aw sadeeqikum laysa 'alaykum junahun an takuloo jamee'an aw ashtatan faitha dakhaltum buyootan fasallimoo 'ala anfusikum tahiyyatan min 'indi Allahi mubarakatan tayyibatan kathalika yubayyinu Allahu lakumu alayati la'allakum ta'qiloona (an-Nūr 24:61)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
न अंधे के लिए कोई हरज है, न लँगड़े के लिए कोई हरज है और न रोगी के लिए कोई हरज है और न तुम्हारे अपने लिए इस बात में कि तुम अपने घरों में खाओ या अपने बापों के घरों से या अपनी माँओ के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चाचाओं के घरों से या अपनी फूफियों (बुआओं) के घरों से या अपनी ख़ालाओं के घरों से या जिसकी कुंजियों के मालिक हुए हो या अपने मित्र के यहाँ। इसमें तुम्हारे लिए कोई हरज नहीं कि तुम मिलकर खाओ या अलग-अलग। हाँ, अलबत्ता जब घरों में जाया करो तो अपने लोगों को सलाम किया करो, अभिवादन अल्लाह की ओर से नियत किया हुए, बरकतवाला और अत्याधिक पाक। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्ट करता है, ताकि तुम बुद्धि से काम लो
English Sahih:
There is not upon the blind [any] constraint nor upon the lame constraint nor upon the ill constraint nor upon yourselves when you eat from your [own] houses or the houses of your fathers or the houses of your mothers or the houses of your brothers or the houses of your sisters or the houses of your father's brothers or the houses of your father's sisters or the houses of your mother's brothers or the houses of your mother's sisters or [from houses] whose keys you possess or [from the house] of your friend. There is no blame upon you whether you eat together or separately. But when you enter houses, give greetings of peace upon each other – a greeting from Allah, blessed and good. Thus does Allah make clear to you the verses [of ordinance] that you may understand. ([24] An-Nur : 61)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
इस बात में न तो अंधे आदमी के लिए मज़ाएक़ा है और न लँगड़ें आदमी पर कुछ इल्ज़ाम है- और न बीमार पर कोई गुनाह है और न ख़ुद तुम लोगो पर कि अपने घरों से खाना खाओ या अपने बाप दादा नाना बग़ैरह के घरों से या अपनी माँ दादी नानी वगैरह के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चचाओं के घरों से या अपनी फूफ़ियों के घरों से या अपने मामूओं के घरों से या अपनी खालाओं के घरों से या उस घर से जिसकी कुन्जियाँ तुम्हारे हाथ में है या अपने दोस्तों (के घरों) से इस में भी तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं कि सब के सब मिलकर खाओ या अलग अलग फिर जब तुम घर वालों में जाने लगो (और वहाँ किसी का न पाओ) तो ख़ुद अपने ही ऊपर सलाम कर लिया करो जो ख़ुदा की तरफ से एक मुबारक पाक व पाकीज़ा तोहफा है- ख़ुदा यूँ (अपने) एहकाम तुमसे साफ साफ बयान करता है ताकि तुम समझो