رِجَالٌ لَّا تُلْهِيْهِمْ تِجَارَةٌ وَّلَا بَيْعٌ عَنْ ذِكْرِ اللّٰهِ وَاِقَامِ الصَّلٰوةِ وَاِيْتَاۤءِ الزَّكٰوةِ ۙيَخَافُوْنَ يَوْمًا تَتَقَلَّبُ فِيْهِ الْقُلُوْبُ وَالْاَبْصَارُ ۙ ( النور: ٣٧ )
Rijalun la tulheehim tijaratun wala bay'un 'an thikri Allahi waiqami alssalati waeetai alzzakati yakhafoona yawman tataqallabu feehi alquloobu waalabsaru (an-Nūr 24:37)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
उनमें ऐसे लोग प्रभात काल और संध्या समय उसकी तसबीह करते है जिन्हें अल्लाह की याद और नमाज क़ायम करने और ज़कात देने से न तो व्यापार ग़ाफ़िल करता है और न क्रय-विक्रय। वे उस दिन से डरते रहते है जिसमें दिल और आँखें विकल हो जाएँगी
English Sahih:
[Are] men whom neither commerce nor sale distracts from the remembrance of Allah and performance of prayer and giving of Zakah. They fear a Day in which the hearts and eyes will [fearfully] turn about. ([24] An-Nur : 37)