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۞ وَلَوْ رَحِمْنٰهُمْ وَكَشَفْنَا مَا بِهِمْ مِّنْ ضُرٍّ لَّلَجُّوْا فِيْ طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُوْنَ  ( المؤمنون: ٧٥ )

And if
وَلَوْ
और अगर
We had mercy on them
رَحِمْنَٰهُمْ
रहम करें हम उन पर
and We removed
وَكَشَفْنَا
और खोल दें हम
what
مَا
जो
(was) on them
بِهِم
उन्हें है
of
مِّن
तकलीफ़ में से
(the) hardship
ضُرٍّ
तकलीफ़ में से
surely they would persist
لَّلَجُّوا۟
अलबत्ता वो अड़े रहेंगे
in
فِى
अपनी सरकशी में
their transgression
طُغْيَٰنِهِمْ
अपनी सरकशी में
wandering blindly
يَعْمَهُونَ
भटकते हुए

Walaw rahimnahum wakashafna ma bihim min durrin lalajjoo fee tughyanihim ya'mahoona (al-Muʾminūn 23:75)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

यदि हम (किसी आज़माइश में डालने के पश्चात) उनपर दया करते और जिस तकलीफ़ में वे होते उसे दूर कर देते तो भी वे अपनी सरकशी में हठात बहकते रहते

English Sahih:

And even if We gave them mercy and removed what was upon them of affliction, they would persist in their transgression, wandering blindly. ([23] Al-Mu'minun : 75)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और अगर हम उन पर तरस खायें और जो तकलीफें उनको (कुफ्र की वजह से) पहुँच रही हैं उन को दफा कर दें तो यक़ीनन ये लोग (और भी) अपनी सरकशी पर अड़ जाए और भटकते फिरें