اِنَّهٗ كَانَ فَرِيْقٌ مِّنْ عِبَادِيْ يَقُوْلُوْنَ رَبَّنَآ اٰمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا وَاَنْتَ خَيْرُ الرّٰحِمِيْنَ ۚ ( المؤمنون: ١٠٩ )
Indeed
إِنَّهُۥ
बेशक वो
(there) was
كَانَ
था वो
a party
فَرِيقٌ
एक गिरोह
of
مِّنْ
मेरे बन्दों में से
My slaves
عِبَادِى
मेरे बन्दों में से
(who) said
يَقُولُونَ
वो कहते थे
"Our Lord!
رَبَّنَآ
ऐ हमारे रब
We believe
ءَامَنَّا
ईमान लाए हम
so forgive
فَٱغْفِرْ
पस बख़्श दे
us
لَنَا
हमें
and have mercy on us
وَٱرْحَمْنَا
और रहम फ़रमा हम पर
and You
وَأَنتَ
और तू
(are) best
خَيْرُ
बेहतर है
(of) those who show mercy
ٱلرَّٰحِمِينَ
सब रहम करने वालों में
Innahu kana fareequn min 'ibadee yaqooloona rabbana amanna faighfir lana wairhamna waanta khayru alrrahimeena (al-Muʾminūn 23:109)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
मेरे बन्दों में कुछ लोग थे, जो कहते थे, हमारे रब! हम ईमान ले आए। अतः तू हमें क्षमा कर दे और हमपर दया कर। तू सबसे अच्छा दया करनेवाला है
English Sahih:
Indeed, there was a party of My servants who said, 'Our Lord, we have believed, so forgive us and have mercy upon us, and You are the best of the merciful.' ([23] Al-Mu'minun : 109)