اَلَّذِيْنَ يَأْكُلُوْنَ الرِّبٰوا لَا يَقُوْمُوْنَ اِلَّا كَمَا يَقُوْمُ الَّذِيْ يَتَخَبَّطُهُ الشَّيْطٰنُ مِنَ الْمَسِّۗ ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ قَالُوْٓا اِنَّمَا الْبَيْعُ مِثْلُ الرِّبٰواۘ وَاَحَلَّ اللّٰهُ الْبَيْعَ وَحَرَّمَ الرِّبٰواۗ فَمَنْ جَاۤءَهٗ مَوْعِظَةٌ مِّنْ رَّبِّهٖ فَانْتَهٰى فَلَهٗ مَا سَلَفَۗ وَاَمْرُهٗٓ اِلَى اللّٰهِ ۗ وَمَنْ عَادَ فَاُولٰۤىِٕكَ اَصْحٰبُ النَّارِ ۚ هُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَ ( البقرة: ٢٧٥ )
Allatheena yakuloona alrriba la yaqoomoona illa kama yaqoomu allathee yatakhabbatuhu alshshaytanu mina almassi thalika biannahum qaloo innama albay'u mithlu alrriba waahalla Allahu albay'a waharrama alrriba faman jaahu maw'ithatun min rabbihi faintaha falahu ma salafa waamruhu ila Allahi waman 'ada faolaika ashabu alnnari hum feeha khalidoona (al-Baq̈arah 2:275)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और लोग ब्याज खाते है, वे बस इस प्रकार उठते है जिस प्रकार वह क्यक्ति उठता है जिसे शैतान ने छूकर बावला कर दिया हो और यह इसलिए कि उनका कहना है, 'व्यापार भी तो ब्याज के सदृश है,' जबकि अल्लाह ने व्यापार को वैध और ब्याज को अवैध ठहराया है। अतः जिसको उसके रब की ओर से नसीहत पहुँची और वह बाज़ आ गया, तो जो कुछ पहले ले चुका वह उसी का रहा और मामला उसका अल्लाह के हवाले है। और जिसने फिर यही कर्म किया तो ऐसे ही लोग आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है। उसमें वे सदैव रहेंगे
English Sahih:
Those who consume interest cannot stand [on the Day of Resurrection] except as one stands who is being beaten by Satan into insanity. That is because they say, "Trade is [just] like interest." But Allah has permitted trade and has forbidden interest. So whoever has received an admonition from his Lord and desists may have what is past, and his affair rests with Allah. But whoever returns [to dealing in interest or usury] – those are the companions of the Fire; they will abide eternally therein. ([2] Al-Baqarah : 275)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
जो लोग सूद खाते हैं वह (क़यामत में) खड़े न हो सकेंगे मगर उस शख्स की तरह खड़े होंगे जिस को शैतान ने लिपट कर मख़बूतुल हवास (पागल) बना दिया है ये इस वजह से कि वह उसके क़ायल हो गए कि जैसा बिक्री का मामला वैसा ही सूद का मामला हालॉकि बिक्री को तो खुदा ने हलाल और सूद को हराम कर दिया बस जिस शख्स के पास उसके परवरदिगार की तरफ़ से नसीहत (मुमानियत) आये और वह बाज़ आ गया तो इस हुक्म के नाज़िल होने से पहले जो सूद ले चुका वह तो उस का हो चुका और उसका अम्र (मामला) ख़ुदा के हवाले है और जो मनाही के बाद फिर सूद ले (या बिक्री के माले को यकसा बताए जाए) तो ऐसे ही लोग जहन्नुम में रहेंगे