وَالَّذِيْنَ يُتَوَفَّوْنَ مِنْكُمْ وَيَذَرُوْنَ اَزْوَاجًا يَّتَرَبَّصْنَ بِاَنْفُسِهِنَّ اَرْبَعَةَ اَشْهُرٍ وَّعَشْرًا ۚ فاِذَا بَلَغْنَ اَجَلَهُنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيْمَا فَعَلْنَ فِيْٓ اَنْفُسِهِنَّ بِالْمَعْرُوْفِۗ وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِيْرٌ ( البقرة: ٢٣٤ )
Waallatheena yutawaffawna minkum wayatharoona azwajan yatarabbasna bianfusihinna arba'ata ashhurin wa'ashran faitha balaghna ajalahunna fala junaha 'alaykum feema fa'alna fee anfusihinna bialma'roofi waAllahu bima ta'maloona khabeerun (al-Baq̈arah 2:234)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और तुममें से जो लोग मर जाएँ और अपने पीछे पत्नियों छोड़ जाएँ, तो वे पत्नियों अपने-आपको चार महीने और दस दिन तक रोके रखें। फिर जब वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो सामान्य नियम के अनुसार वे अपने लिए जो कुछ करें, उसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं। जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है
English Sahih:
And those who are taken in death among you and leave wives behind – they, [the wives, shall] wait four months and ten [days]. And when they have fulfilled their term, then there is no blame upon you for what they do with themselves in an acceptable manner. And Allah is [fully] Aware of what you do. ([2] Al-Baqarah : 234)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और तुममें से जो लोग बीवियाँ छोड़ के मर जाएँ तो ये औरतें चार महीने दस रोज़ (इद्दा भर) अपने को रोके (और दूसरा निकाह न करें) फिर जब (इद्दे की मुद्दत) पूरी कर ले तो शरीयत के मुताबिक़ जो कुछ अपने हक़ में करें इस बारे में तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उस से ख़बरदार है