يَسْـَٔلُوْنَكَ عَنِ الشَّهْرِ الْحَرَامِ قِتَالٍ فِيْهِۗ قُلْ قِتَالٌ فِيْهِ كَبِيْرٌ ۗ وَصَدٌّ عَنْ سَبِيْلِ اللّٰهِ وَكُفْرٌۢ بِهٖ وَالْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَاِخْرَاجُ اَهْلِهٖ مِنْهُ اَكْبَرُ عِنْدَ اللّٰهِ ۚ وَالْفِتْنَةُ اَكْبَرُ مِنَ الْقَتْلِ ۗ وَلَا يَزَالُوْنَ يُقَاتِلُوْنَكُمْ حَتّٰى يَرُدُّوْكُمْ عَنْ دِيْنِكُمْ اِنِ اسْتَطَاعُوْا ۗ وَمَنْ يَّرْتَدِدْ مِنْكُمْ عَنْ دِيْنِهٖ فَيَمُتْ وَهُوَ كَافِرٌ فَاُولٰۤىِٕكَ حَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْ فِى الدُّنْيَا وَالْاٰخِرَةِ ۚ وَاُولٰۤىِٕكَ اَصْحٰبُ النَّارِۚ هُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَ ( البقرة: ٢١٧ )
Yasaloonaka 'ani alshshahri alharami qitalin feehi qul qitalun feehi kabeerun wasaddun 'an sabeeli Allahi wakufrun bihi waalmasjidi alharami waikhraju ahlihi minhu akbaru 'inda Allahi waalfitnatu akbaru mina alqatli wala yazaloona yuqatiloonakum hatta yaruddookum 'an deenikum ini istata'oo waman yartadid minkum 'an deenihi fayamut wahuwa kafirun faolaika habitat a'maluhum fee alddunya waalakhirati waolaika ashabu alnnari hum feeha khalidoona (al-Baq̈arah 2:217)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
वे तुमसे आदरणीय महीने में युद्ध के विषय में पूछते है। कहो, 'उसमें लड़ना बड़ी गम्भीर बात है, परन्तु अल्लाह के मार्ग से रोकना, उसके साथ अविश्वास करना, मस्जिदे हराम (काबा) से रोकना और उसके लोगों को उससे निकालना, अल्लाह की स्पष्ट में इससे भी अधिक गम्भीर है और फ़ितना (उत्पीड़न), रक्तपात से भी बुरा है।' और उसका बस चले तो वे तो तुमसे बराबर लड़ते रहे, ताकि तुम्हें तुम्हारे दीन (धर्म) से फेर दें। और तुममे से जो कोई अपने दीन से फिर जाए और अविश्वासी होकर मरे, तो ऐसे ही लोग है जिनके कर्म दुनिया और आख़िरत में नष्ट हो गए, और वही आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है, वे उसी में सदैव रहेंगे
English Sahih:
They ask you about the sacred month – about fighting therein. Say, "Fighting therein is great [sin], but averting [people] from the way of Allah and disbelief in Him and [preventing access to] al-Masjid al-Haram and the expulsion of its people therefrom are greater [evil] in the sight of Allah. And fitnah is greater than killing." And they will continue to fight you until they turn you back from your religion if they are able. And whoever of you reverts from his religion [to disbelief] and dies while he is a disbeliever – for those, their deeds have become worthless in this world and the Hereafter, and those are the companions of the Fire; they will abide therein eternally. ([2] Al-Baqarah : 217)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(ऐ रसूल) तुमसे लोग हुरमत वाले महीनों की निस्बत पूछते हैं कि (आया) जिहाद उनमें जायज़ है तो तुम उन्हें जवाब दो कि इन महीनों में जेहाद बड़ा गुनाह है और ये भी याद रहे कि ख़ुदा की राह से रोकना और ख़ुदा से इन्कार और मस्जिदुल हराम (काबा) से रोकना और जो उस के अहल है उनका मस्जिद से निकाल बाहर करना (ये सब) ख़ुदा के नज़दीक इस से भी बढ़कर गुनाह है और फ़ितना परदाज़ी कुश्ती ख़़ून से भी बढ़ कर है और ये कुफ्फ़ार हमेशा तुम से लड़ते ही चले जाएँगें यहाँ तक कि अगर उन का बस चले तो तुम को तुम्हारे दीन से फिरा दे और तुम में जो शख्स अपने दीन से फिरा और कुफ़्र की हालत में मर गया तो ऐसों ही का किया कराया सब कुछ दुनिया और आखेरत (दोनों) में अकारत है और यही लोग जहन्नुमी हैं (और) वह उसी में हमेशा रहेंगें