كَانَ النَّاسُ اُمَّةً وَّاحِدَةً ۗ فَبَعَثَ اللّٰهُ النَّبِيّٖنَ مُبَشِّرِيْنَ وَمُنْذِرِيْنَ ۖ وَاَنْزَلَ مَعَهُمُ الْكِتٰبَ بِالْحَقِّ لِيَحْكُمَ بَيْنَ النَّاسِ فِيْمَا اخْتَلَفُوْا فِيْهِ ۗ وَمَا اخْتَلَفَ فِيْهِ اِلَّا الَّذِيْنَ اُوْتُوْهُ مِنْۢ بَعْدِ مَا جَاۤءَتْهُمُ الْبَيِّنٰتُ بَغْيًا ۢ بَيْنَهُمْ ۚ فَهَدَى اللّٰهُ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لِمَا اخْتَلَفُوْا فِيْهِ مِنَ الْحَقِّ بِاِذْنِهٖ ۗ وَاللّٰهُ يَهْدِيْ مَنْ يَّشَاۤءُ اِلٰى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيْمٍ ( البقرة: ٢١٣ )
Kana alnnasu ommatan wahidatan faba'atha Allahu alnnabiyyeena mubashshireena wamunthireena waanzala ma'ahumu alkitaba bialhaqqi liyahkuma bayna alnnasi feema ikhtalafoo feehi wama ikhtalafa feehi illa allatheena ootoohu min ba'di ma jaathumu albayyinatu baghyan baynahum fahada Allahu allatheena amanoo lima ikhtalafoo feehi mina alhaqqi biithnihi waAllahu yahdee man yashao ila siratin mustaqeemin (al-Baq̈arah 2:213)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
सारे मनुष्य एक ही समुदाय थे (उन्होंने विभेद किया) तो अल्लाह ने नबियों को भेजा, जो शुभ-सूचना देनेवाले और डरानवाले थे; और उनके साथ हक़ पर आधारित किताब उतारी, ताकि लोगों में उन बातों का जिनमें वे विभेद कर रहे है, फ़ैसला कर दे। इसमें विभेद तो बस उन्हीं लोगों ने, जिन्हें वह मिली थी, परस्पर ज़्यादती करने के लिए इसके पश्चात किया, जबकि खुली निशानियाँ उनके पास आ चुकी थी। अतः ईमानवालों को अल्लाह ने अपनी अनूज्ञा से उस सत्य के विषय में मार्गदर्शन किया, जिसमें उन्होंने विभेद किया था। अल्लाह जिसे चाहता है, सीधे मार्ग पर चलाता है
English Sahih:
Mankind was [of] one religion [before their deviation]; then Allah sent the prophets as bringers of good tidings and warners and sent down with them the Scripture in truth to judge between the people concerning that in which they differed. And none differed over it [i.e., the Scripture] except those who were given it – after the clear proofs came to them – out of jealous animosity among themselves. And Allah guided those who believed to the truth concerning that over which they had differed, by His permission. And Allah guides whom He wills to a straight path. ([2] Al-Baqarah : 213)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(पहले) सब लोग एक ही दीन रखते थे (फिर आपस में झगड़ने लगे तब) ख़ुदा ने नजात से ख़ुश ख़बरी देने वाले और अज़ाब से डराने वाले पैग़म्बरों को भेजा और इन पैग़म्बरों के साथ बरहक़ किताब भी नाज़िल की ताकि जिन बातों में लोग झगड़ते थे किताबे ख़ुदा (उसका) फ़ैसला कर दे और फिर अफ़सोस तो ये है कि इस हुक्म से इख्तेलाफ किया भी तो उन्हीं लोगों ने जिन को किताब दी गयी थी और वह भी जब उन के पास ख़ुदा के साफ एहकाम आ चुके उसके बाद और वह भी आपस की शरारत से तब ख़ुदा ने अपनी मेहरबानी से (ख़ालिस) ईमानदारों को वह राहे हक़ दिखा दी जिस में उन लोगों ने इख्तेलाफ डाल रखा था और ख़ुदा जिस को चाहे राहे रास्त की हिदायत करता है