فَمَنْ خَافَ مِنْ مُّوْصٍ جَنَفًا اَوْ اِثْمًا فَاَصْلَحَ بَيْنَهُمْ فَلَآ اِثْمَ عَلَيْهِ ۗ اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ࣖ ( البقرة: ١٨٢ )
But whoever
فَمَنْ
तो जो कोई
fears
خَافَ
ख़ौफ़ करे
from
مِن
वसीयत करने वाले से
(the) testator
مُّوصٍ
वसीयत करने वाले से
(any) error
جَنَفًا
तरफ़दारी का
or
أَوْ
या
sin
إِثْمًا
गुनाह का
then reconciles
فَأَصْلَحَ
तो वो इस्लाह करा दे
between them
بَيْنَهُمْ
दर्मियान उनके
then (there is) no
فَلَآ
तो नहीं
sin
إِثْمَ
कोई गुनाह
on him
عَلَيْهِۚ
उस पर
Indeed
إِنَّ
बेशक
Allah
ٱللَّهَ
अल्लाह
(is) Oft-Forgiving
غَفُورٌ
बहुत बख़्शने वाला है
All-Merciful
رَّحِيمٌ
निहायत रहम करने वाला है
Faman khafa min moosin janafan aw ithman faaslaha baynahum fala ithma 'alayhi inna Allaha ghafoorun raheemun (al-Baq̈arah 2:182)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
फिर जिस किसी वसीयत करनेवाले को न्याय से किसी प्रकार के हटने या हक़़ मारने की आशंका हो, इस कारण उनके (वारिसों के) बीच सुधार की व्यवस्था कर दें, तो उसपर कोई गुनाह नहीं। निस्संदेह अल्लाह क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है
English Sahih:
But if one fears from the bequeather [some] error or sin and corrects that which is between them [i.e., the concerned parties], there is no sin upon him. Indeed, Allah is Forgiving and Merciful. ([2] Al-Baqarah : 182)