۞ اِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِنْ شَعَاۤىِٕرِ اللّٰهِ ۚ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ اَوِ اعْتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِ اَنْ يَّطَّوَّفَ بِهِمَا ۗ وَمَنْ تَطَوَّعَ خَيْرًاۙ فَاِنَّ اللّٰهَ شَاكِرٌ عَلِيْمٌ ( البقرة: ١٥٨ )
Inna alssafa waalmarwata min sha'airi Allahi faman hajja albayta awi i'tamara fala junaha 'alayhi an yattawwafa bihima waman tatawwa'a khayran fainna Allaha shakirun 'aleemun (al-Baq̈arah 2:158)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
निस्संदेह सफ़ा और मरवा अल्लाह की विशेष निशानियों में से हैं; अतः जो इस घर (काबा) का हज या उमपा करे, उसके लिए इसमें कोई दोष नहीं कि वह इन दोनों (पहाडियों) के बीच फेरा लगाए। और जो कोई स्वेच्छा और रुचि से कोई भलाई का कार्य करे तो अल्लाह भी गुणग्राहक, सर्वज्ञ है
English Sahih:
Indeed, as-Safa and al-Marwah are among the symbols of Allah. So whoever makes Hajj [pilgrimage] to the House or performs Umrah – there is no blame upon him for walking between them. And whoever volunteers good – then indeed, Allah is Appreciative and Knowing. ([2] Al-Baqarah : 158)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
बेशक (कोहे) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़ुदा की निशानियों में से हैं पस जो शख्स ख़ानए काबा का हज या उमरा करे उस पर उन दोनो के (दरमियान) तवाफ़ (आमद ओ रफ्त) करने में कुछ गुनाह नहीं (बल्कि सवाब है) और जो शख्स खुश खुश नेक काम करे तो फिर ख़ुदा भी क़दरदाँ (और) वाक़िफ़कार है