وَاَمَّا الْجِدَارُ فَكَانَ لِغُلٰمَيْنِ يَتِيْمَيْنِ فِى الْمَدِيْنَةِ وَكَانَ تَحْتَهٗ كَنْزٌ لَّهُمَا وَكَانَ اَبُوْهُمَا صَالِحًا ۚفَاَرَادَ رَبُّكَ اَنْ يَّبْلُغَآ اَشُدَّهُمَا وَيَسْتَخْرِجَا كَنْزَهُمَا رَحْمَةً مِّنْ رَّبِّكَۚ وَمَا فَعَلْتُهٗ عَنْ اَمْرِيْۗ ذٰلِكَ تَأْوِيْلُ مَا لَمْ تَسْطِعْ عَّلَيْهِ صَبْرًاۗ ࣖ ( الكهف: ٨٢ )
Waamma aljidaru fakana lighulamayni yateemayni fee almadeenati wakana tahtahu kanzun lahuma wakana aboohuma salihan faarada rabbuka an yablugha ashuddahuma wayastakhrija kanzahuma rahmatan min rabbika wama fa'altuhu 'an amree thalika taweelu ma lam tasti' 'alayhi sabran (al-Kahf 18:82)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और रही यह दीवार तो यह दो अनाथ बालकों की है जो इस नगर में रहते है। और इसके नीचे उनका ख़जाना मौजूद है। और उनका बाप नेक था, इसलिए तुम्हारे रब ने चाहा कि वे अपनी युवावस्था को पहुँच जाएँ और अपना ख़जाना निकाल लें। यह तुम्हारे रब की दयालुता के कारण हुआ। मैंने तो अपने अधिकार से कुछ नहीं किया। यह है वास्तविकता उसकी जिसपर तुम धैर्य न रख सके।'
English Sahih:
And as for the wall, it belonged to two orphan boys in the city, and there was beneath it a treasure for them, and their father had been righteous. So your Lord intended that they reach maturity and extract their treasure, as a mercy from your Lord. And I did it not of my own accord. That is the interpretation of that about which you could not have patience." ([18] Al-Kahf : 82)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और वह जो दीवार थी (जिसे मैंने खड़ा कर दिया) तो वह शहर के दो यतीम लड़कों की थी और उसके नीचे उन्हीं दोनों लड़कों का ख़ज़ाना (गड़ा हुआ था) और उन लड़कों का बाप एक नेक आदमी था तो तुम्हारे परवरदिगार ने चाहा कि दोनों लड़के अपनी जवानी को पहुँचे तो तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से अपना ख़ज़ाने निकाल ले और मैंने (जो कुछ किया) कुछ अपने एख्तियार से नहीं किया (बल्कि खुदा के हुक्म से) ये हक़ीक़त है उन वाक़यात की जिन पर आपसे सब्र न हो सका