وَدَخَلَ جَنَّتَهٗ وَهُوَ ظَالِمٌ لِّنَفْسِهٖۚ قَالَ مَآ اَظُنُّ اَنْ تَبِيْدَ هٰذِهٖٓ اَبَدًاۙ ( الكهف: ٣٥ )
And he entered
وَدَخَلَ
और वो दाख़िल हुआ
his garden
جَنَّتَهُۥ
अपने बाग़ में
while he
وَهُوَ
इस हाल में कि वो
(was) unjust
ظَالِمٌ
ज़ुल्म करने वाला था
to himself
لِّنَفْسِهِۦ
अपनी जान पर
He said
قَالَ
कहने लगा
"Not
مَآ
नहीं
I think
أَظُنُّ
मैं गुमान करता
that
أَن
कि
will perish
تَبِيدَ
बर्बाद होगा
this
هَٰذِهِۦٓ
ये (बाग़)
ever
أَبَدًا
कभी भी
Wadakhala jannatahu wahuwa thalimun linafsihi qala ma athunnu an tabeeda hathihi abadan (al-Kahf 18:35)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
वह अपने हकड में ज़ालिम बनकर बाग़ में प्रविष्ट हुआ। कहने लगा, 'मैं ऐसा नहीं समझता कि वह कभी विनष्ट होगा
English Sahih:
And he entered his garden while he was unjust to himself. He said, "I do not think that this will perish – ever. ([18] Al-Kahf : 35)