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وَلَقَدْ صَرَّفْنَا لِلنَّاسِ فِيْ هٰذَا الْقُرْاٰنِ مِنْ كُلِّ مَثَلٍۖ فَاَبٰىٓ اَكْثَرُ النَّاسِ اِلَّا كُفُوْرًا  ( الإسراء: ٨٩ )

And verily
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
We have explained
صَرَّفْنَا
फेर-फेर कर लाते हैं हम
to mankind
لِلنَّاسِ
लोगों के लिए
in
فِى
इस क़ुरआन में
this
هَٰذَا
इस क़ुरआन में
Quran
ٱلْقُرْءَانِ
इस क़ुरआन में
from
مِن
हर तरह की
every
كُلِّ
हर तरह की
example
مَثَلٍ
मिसाल
but refused
فَأَبَىٰٓ
पस इन्कार किया
most
أَكْثَرُ
अक्सर
(of) the mankind
ٱلنَّاسِ
लोगों ने
except
إِلَّا
सिवाय
disbelief
كُفُورًا
कुफ़्र करने के

Walaqad sarrafna lilnnasi fee hatha alqurani min kulli mathalin faaba aktharu alnnasi illa kufooran (al-ʾIsrāʾ 17:89)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए प्रत्येक तत्वदर्शिता की बात फेर-फेरकर बयान की, फिर भी अधिकतर लोगों के लिए इनकार के सिवा हर चीज़ अस्वीकार्य ही रही

English Sahih:

And We have certainly diversified for the people in this Quran from every [kind of] example, but most of the people refused except disbelief. ([17] Al-Isra : 89)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और हमने तो लोगों (के समझाने) के वास्ते इस क़ुरान में हर क़िस्म की मसलें अदल बदल के बयान कर दीं उस पर भी अक्सर लोग बग़ैर नाशुक्री किए नहीं रहते