وَيَسْـَٔلُوْنَكَ عَنِ الرُّوْحِۗ قُلِ الرُّوْحُ مِنْ اَمْرِ رَبِّيْ وَمَآ اُوْتِيْتُمْ مِّنَ الْعِلْمِ اِلَّا قَلِيْلًا ( الإسراء: ٨٥ )
And they ask you
وَيَسْـَٔلُونَكَ
और वो सवाल करते हैं आपसे
concerning
عَنِ
रूह के बारे में
the soul
ٱلرُّوحِۖ
रूह के बारे में
Say
قُلِ
कह दीजिए
"The soul
ٱلرُّوحُ
रूह
(is) of
مِنْ
हुक्म से है
(the) affair
أَمْرِ
हुक्म से है
(of) my Lord
رَبِّى
मेरे रब के
And not
وَمَآ
और नहीं
you have been given
أُوتِيتُم
दिए गए तुम
of
مِّنَ
इल्म में से
the knowledge
ٱلْعِلْمِ
इल्म में से
except
إِلَّا
मगर
a little"
قَلِيلًا
बहुत थोड़ा
Wayasaloonaka 'ani alrroohi quli alrroohu min amri rabbee wama ooteetum mina al'ilmi illa qaleelan (al-ʾIsrāʾ 17:85)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
वे तुमसे रूह के विषय में पूछते है। कह दो, 'रूह का संबंध तो मेरे रब के आदेश से है, किन्तु ज्ञान तुम्हें मिला थोड़ा ही है।'
English Sahih:
And they ask you, [O Muhammad], about the soul. Say, "The soul is of the affair [i.e., concern] of my Lord. And you [i.e., mankind] have not been given of knowledge except a little." ([17] Al-Isra : 85)