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وَلَا تَقْرَبُوْا مَالَ الْيَتِيْمِ اِلَّا بِالَّتِيْ هِيَ اَحْسَنُ حَتّٰى يَبْلُغَ اَشُدَّهٗۖ وَاَوْفُوْا بِالْعَهْدِۖ اِنَّ الْعَهْدَ كَانَ مَسْـُٔوْلًا  ( الإسراء: ٣٤ )

And (do) not
وَلَا
और ना
come near
تَقْرَبُوا۟
तुम क़रीब जाओ
(the) wealth
مَالَ
माले
(of) the orphan
ٱلْيَتِيمِ
यतीम के
except
إِلَّا
मगर
with what
بِٱلَّتِى
साथ उस तरीक़े के
[it] is
هِىَ
वो (जो)
best
أَحْسَنُ
ज़्यादा अच्छा है
until
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
he reaches
يَبْلُغَ
वो पहुँच जाए
his maturity
أَشُدَّهُۥۚ
अपनी जवानी को
And fulfil
وَأَوْفُوا۟
और पूरा करो
the covenant
بِٱلْعَهْدِۖ
अहद को
Indeed
إِنَّ
बेशक
the covenant
ٱلْعَهْدَ
अहद
will be
كَانَ
है
questioned
مَسْـُٔولًا
पूछा जाने वाला

Wala taqraboo mala alyateemi illa biallatee hiya ahsanu hatta yablugha ashuddahu waawfoo bial'ahdi inna al'ahda kana masoolan (al-ʾIsrāʾ 17:34)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और अनाथ के माल को हाथ में लगाओ सिवाय उत्तम रीति के, यहाँ तक कि वह अपनी युवा अवस्था को पहुँच जाए, और प्रतिज्ञा पूरी करो। प्रतिज्ञा के विषय में अवश्य पूछा जाएगा

English Sahih:

And do not approach the property of an orphan, except in the way that is best, until he reaches maturity. And fulfill [every] commitment. Indeed, the commitment is ever [that about which one will be] questioned. ([17] Al-Isra : 34)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

(कि क़त्ल ही करे और माफ न करे) और यतीम जब तक जवानी को पहुँचे उसके माल के क़रीब भी न पहुँच जाना मगर हाँ इस तरह पर कि (यतीम के हक़ में) बेहतर हो और एहद को पूरा करो क्योंकि (क़यामत में) एहद की ज़रुर पूछ गछ होगी