رَبُّكُمْ اَعْلَمُ بِمَا فِيْ نُفُوْسِكُمْ ۗاِنْ تَكُوْنُوْا صٰلِحِيْنَ فَاِنَّهٗ كَانَ لِلْاَوَّابِيْنَ غَفُوْرًا ( الإسراء: ٢٥ )
Your Lord
رَّبُّكُمْ
रब तुम्हारा
(is) most knowing
أَعْلَمُ
ज़्यादा जानता है
of what
بِمَا
उसे जो
(is) in
فِى
तुम्हारे नफ़्सों में है
yourselves
نُفُوسِكُمْۚ
तुम्हारे नफ़्सों में है
If
إِن
अगर
you are
تَكُونُوا۟
तुम होगे
righteous
صَٰلِحِينَ
नेक
then indeed He
فَإِنَّهُۥ
तो यक़ीनन वो
is
كَانَ
है वो
to those who often turn (to Him)
لِلْأَوَّٰبِينَ
रुजूअ करने वालों के लिए
Most Forgiving
غَفُورًا
बहुत बख़्शने वाला
Rabbukum a'lamu bima fee nufoosikum in takoonoo saliheena fainnahu kana lilawwabeena ghafooran (al-ʾIsrāʾ 17:25)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जो कुछ तुम्हारे जी में है उसे तुम्हारा रब भली-भाँति जानता है। यदि तुम सुयोग्य और अच्छे हुए तो निश्चय ही वह भी ऐसे रुजू करनेवालों के लिए बड़ा क्षमाशील है
English Sahih:
Your Lord is most knowing of what is within yourselves. If you should be righteous [in intention] – then indeed He is ever, to the often returning [to Him], Forgiving. ([17] Al-Isra : 25)