وَاٰتٰىكُمْ مِّنْ كُلِّ مَا سَاَلْتُمُوْهُۗ وَاِنْ تَعُدُّوْا نِعْمَتَ اللّٰهِ لَا تُحْصُوْهَاۗ اِنَّ الْاِنْسَانَ لَظَلُوْمٌ كَفَّارٌ ࣖ ( ابراهيم: ٣٤ )
And He gave you
وَءَاتَىٰكُم
और उसने दी तुम्हें
of
مِّن
हर वो चीज़
all
كُلِّ
हर वो चीज़
what
مَا
जो
you asked of Him
سَأَلْتُمُوهُۚ
माँगी तुमने उस से
And if
وَإِن
और अगर
you count
تَعُدُّوا۟
तुम गिनने लगो
(the) Favor of Allah
نِعْمَتَ
नेअमतें
(the) Favor of Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह की
not
لَا
नहीं तुम शुमार कर सकते उन्हें
you will (be able to) count them
تُحْصُوهَآۗ
नहीं तुम शुमार कर सकते उन्हें
Indeed
إِنَّ
बेशक
the mankind
ٱلْإِنسَٰنَ
इन्सान
(is) surely unjust
لَظَلُومٌ
अलबत्ता बड़ा ज़ालिम है
(and) ungrateful
كَفَّارٌ
बड़ा नाशुक्रा है
Waatakum min kulli ma saaltumoohu wain ta'uddoo ni'mata Allahi la tuhsooha inna alinsana lathaloomun kaffarun (ʾIbrāhīm 14:34)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और हर उस चीज़ में से तुम्हें दिया जो तुमने उससे माँगा यदि तुम अल्लाह की नेमतों की गणना नहीं कर सकते। वास्तव में मनुष्य ही बड़ा ही अन्यायी, कृतघ्न है
English Sahih:
And He gave you from all you asked of Him. And if you should count the favor [i.e., blessings] of Allah, you could not enumerate them. Indeed, mankind is [generally] most unjust and ungrateful. ([14] Ibrahim : 34)