قُلْ لِّعِبَادِيَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا يُقِيْمُوا الصَّلٰوةَ وَيُنْفِقُوْا مِمَّا رَزَقْنٰهُمْ سِرًّا وَّعَلَانِيَةً مِّنْ قَبْلِ اَنْ يَّأْتِيَ يَوْمٌ لَّا بَيْعٌ فِيْهِ وَلَا خِلٰلٌ ( ابراهيم: ٣١ )
Qul li'ibadiya allatheena amanoo yuqeemoo alssalata wayunfiqoo mimma razaqnahum sirran wa'alaniyatan min qabli an yatiya yawmun la bay'un feehi wala khilalun (ʾIbrāhīm 14:31)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
मेरे जो बन्दे ईमान लाए है उनसे कह दो कि वे नमाज़ की पाबन्दी करें और हमने उन्हें जो कुछ दिया है उसमें से छुपे और खुले ख़र्च करें, इससे पहले कि वह दिन आ जाए जिनमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न मैत्री
English Sahih:
[O Muhammad], tell My servants who have believed to establish prayer and spend from what We have provided them, secretly and publicly, before a Day comes in which there will be no exchange [i.e., ransom], nor any friendships. ([14] Ibrahim : 31)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(ऐ रसूल) मेरे वह बन्दे जो ईमान ला चुके उन से कह दो कि पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करें और जो कुछ हमने उन्हें रोज़ी दी है उसमें से (ख़ुदा की राह में) छिपाकर या दिखा कर ख़र्च किया करे उस दिन (क़यामत) के आने से पहल जिसमें न तो (ख़रीदो) फरोख्त ही (काम आएगी) न दोस्ती मोहब्बत काम (आएगी)