وَقَالَ يٰبَنِيَّ لَا تَدْخُلُوْا مِنْۢ بَابٍ وَّاحِدٍ وَّادْخُلُوْا مِنْ اَبْوَابٍ مُّتَفَرِّقَةٍۗ وَمَآ اُغْنِيْ عَنْكُمْ مِّنَ اللّٰهِ مِنْ شَيْءٍۗ اِنِ الْحُكْمُ اِلَّا لِلّٰهِ ۗعَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَعَلَيْهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُتَوَكِّلُوْنَ ( يوسف: ٦٧ )
Waqala ya baniyya la tadkhuloo min babin wahidin waodkhuloo min abwabin mutafarriqatin wama oghnee 'ankum mina Allahi min shayin ini alhukmu illa lillahi 'alayhi tawakkaltu wa'alayhi falyatawakkali almutawakkiloona (Yūsuf 12:67)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
उसने यह भी कहा, 'ऐ मेरे बेटो! एक द्वार से प्रवेश न करना, बल्कि विभिन्न द्वारों से प्रवेश करना यद्यपि मैं अल्लाह के मुक़ाबले में तुम्हारे काम नहीं आ सकता आदेश तो बस अल्लाह ही का चलता है। उसी पर मैंने भरोसा किया और भरोसा करनेवालों को उसी पर भरोसा करना चाहिए।'
English Sahih:
And he said, "O my sons, do not enter from one gate but enter from different gates; and I cannot avail you against [the decree of] Allah at all. The decision is only for Allah; upon Him I have relied, and upon Him let those who would rely [indeed] rely." ([12] Yusuf : 67)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और याक़ूब ने (नसीहतन चलते वक्त बेटो से) कहा ऐ फरज़न्दों (देखो ख़बरदार) सब के सब एक ही दरवाजे से न दाख़िल होना (कि कहीं नज़र न लग जाए) और मुताफरिक़ (अलग अलग) दरवाज़ों से दाख़िल होना और मै तुमसे (उस बात को जो) ख़ुदा की तरफ से (आए) कुछ टाल भी नहीं सकता हुक्म तो (और असली) ख़ुदा ही के वास्ते है मैने उसी पर भरोसा किया है और भरोसा करने वालों को उसी पर भरोसा करना चाहिए