وَاتَّبَعْتُ مِلَّةَ اٰبَاۤءِيْٓ اِبْرٰهِيْمَ وَاِسْحٰقَ وَيَعْقُوْبَۗ مَا كَانَ لَنَآ اَنْ نُّشْرِكَ بِاللّٰهِ مِنْ شَيْءٍۗ ذٰلِكَ مِنْ فَضْلِ اللّٰهِ عَلَيْنَا وَعَلَى النَّاسِ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَشْكُرُوْنَ ( يوسف: ٣٨ )
Waittaba'tu millata abaee ibraheema waishaqa waya'qooba ma kana lana an nushrika biAllahi min shayin thalika min fadli Allahi 'alayna wa'ala alnnasi walakinna akthara alnnasi la yashkuroona (Yūsuf 12:38)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
अपने पूर्वज इबराहीम, इसहाक़ और याक़ूब का तरीक़ा अपनाया है। इमसे यह नहीं हो सकता कि हम अल्लाह के साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ। यह हमपर और लोगों पर अल्लाह का अनुग्रह है। किन्तु अधिकतर लोग आभार नहीं प्रकट करते
English Sahih:
And I have followed the religion of my fathers, Abraham, Isaac and Jacob. And it was not for us to associate anything with Allah. That is from the favor of Allah upon us and upon the people, but most of the people are not grateful. ([12] Yusuf : 38)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और मैं तो अपने बाप दादा इबराहीम व इसहाक़ व याक़ूब के मज़हब पर चलने वाला हूँ मुनासिब नहीं कि हम ख़ुदा के साथ किसी चीज़ को (उसका) शरीक बनाएँ ये भी ख़ुदा की एक बड़ी मेहरबानी है हम पर भी और तमाम लोगों पर मगर बहुतेरे लोग उसका शुक्रिया (भी) अदा नहीं करते