حَتّٰٓى اِذَا اسْتَا۟يْـَٔسَ الرُّسُلُ وَظَنُّوْٓا اَنَّهُمْ قَدْ كُذِبُوْا جَاۤءَهُمْ نَصْرُنَاۙ فَنُجِّيَ مَنْ نَّشَاۤءُ ۗوَلَا يُرَدُّ بَأْسُنَا عَنِ الْقَوْمِ الْمُجْرِمِيْنَ ( يوسف: ١١٠ )
Hatta itha istayasa alrrusulu wathannoo annahum qad kuthiboo jaahum nasruna fanujjiya man nashao wala yuraddu basuna 'ani alqawmi almujrimeena (Yūsuf 12:110)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
यहाँ तक कि जब वे रसूल निराश होने लगे और वे समझने लगे कि उनसे झूठ कहा गया था कि सहसा उन्हें हमारी सहायता पहुँच गई। फिर हमने जिसे चाहा बचा लिया। किन्तु अपराधी लोगों पर से तो हमारी यातना टलती ही नहीं
English Sahih:
[They continued] until, when the messengers despaired and were certain that they had been denied, there came to them Our victory, and whoever We willed was saved. And Our punishment cannot be repelled from the people who are criminals. ([12] Yusuf : 110)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
पहले के पैग़म्बरो ने तबलीग़े रिसालत यहाँ वक कि जब (क़ौम के ईमान लाने से) पैग़म्बर मायूस हो गए और उन लोगों ने समझ लिया कि वह झुठलाए गए तो उनके पास हमारी (ख़ास) मदद आ पहुँची तो जिसे हमने चाहा नजात दी और हमारा अज़ाब गुनेहगार लोगों के सर से तो टाला नहीं जाता